Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 43
________________ पर्षि कमाल को मी मष्ट करनेमें देर नहीं की / इसके विपरीत जिस साजण कुम्हारने एक समय उसे कांटोंके ढेरमें छिपा कर सिद्धराज के सैनिकोंसे उसकी रक्षा की थी, राज्य मिलते ही उसे अपनी सेवामें बुला कर उसके उपकारके बदले सात सौ गाँवके पट्टेवाले चितौड़की वार्षिक आमदानी उसके लिए निश्चित कर दी। उसका ऐसा बर्ताव देख कर अन्दरके विरोधी थर्रा गये और सारा विरोधभाव छोड़ कर उसकी अनन्य सेवा करने लगे। ऐसे विरोधियोंमें चाहड़ नामक एक कुलीन राजकुमार अग्रणी था जो राज्यकी सेनामें बहुत माना जाता था और जिसे सिद्धराजने अपने पुत्रकी तरह पाला पोषा था / वह कुमारपालका सान्निध्य छोड़ कर शाकम्भरीके गर्विष्ठ राजा अर्णोराजकी सेवामें चला गया और उसे कुमारपालके विरुद्ध खड़ा करके उसके राज्यकी जड़ को उखाड़नेके लिए गुजरातकी सीमा पर लड़ाईके मोर्चे खड़े किये / कुमारपालके भविष्यके लिए यह अत्यन्त विषम परिस्थति थी। उसके सामन्तोंमें से बहुतसे, ऊपरसे तो उसके पक्षमें थे परन्तु अन्दरसे विपक्षमें थे / चाहड राजकुमारकी चालाकीसे मालवाका खामी बल्लालदेव भी दूसरी तरफसे आक्रमण करनेके लिए तैयार हुआ था और इससे कुमारपालकी स्थिति सरौतेके बीच रही हुई सुपारीके समान हो गई / परन्तु कुमारपालके भाग्यबलसे उसके वे समी राज्यभक्त कर्मचारी, जिनकी नियुक्ति उसने राज्य सँभालते ही की थी, समर्थ और विश्वासी निकले / उनकी कुशलत से गुजरातकी जनता नये राजाकी ओर पूर्ण सहानुभूति रखने लगी और सैनिकवर्ग भी पराक्रमी और रणवीर राजाकी छत्रछायामें उन्नतिकी आशासे उत्साहित हुआ / कुमारपालने अपने विश्वासी सेनाध्यक्ष काकभटके सेनापतित्वमें चुने हुए सैनिकोंकी एक फौज मालवामें बल्लालके विरुद्ध भेज दी और स्वयं अपने सारे सामन्तोंको ले कर मारवाड़के 3 का सामना करनेके लिए चल पड़ा / सामन्तोंमें मुख्य चन्द्रावतीका महामण्डलेश्वर विक्रमसिंह था / उसने आबूके पास, ही कुमारपालकी हत्या करनेका षड्यन्त्र रचा, परन्तु कुमारपालने उस षड्यन्त्रको तुरन्त पहचान लिया और वहाँ नहीं ठहरता हुआ सीधा शत्रुकी सेनाकी ओर चला गया। लेकिन समराङ्गणमें भी उसने अपने कुछ सामन्तों और सैनिकोंको शत्रुपक्षकी ओर मिले हुए देखा / कुमारपालने अपने भाग्यका पासा पलटनेके लिए सामयिक कुशलताका उपयोग कर एक ही झपाटेमें शत्रुके ऊपर आक्रमण कर दिया और पहले ही वारमें उसे आहत कर शरणागत होनेके लिए बाध्य बनाया / बल्लालके ऊपर चढ़ाई करने वाले सेनापतिने भी उतनी ही जल्दी शत्रुका शिरश्छेद करके कुमारपालकी विजयपताका उज्जयिनीके राजमहल पर फहरा दी। उस समयके गुजरातके पड़ोसी और प्रतिस्पर्धी मारवाड़ और मालवाके दोनों महाराज्योंको सिद्धराज जयसिंहने ही गुर्जरपताकाके नीचे ला दिया था; परन्तु उसकी मृत्युके पश्चात् गद्दी पर आने वाले नवीन राजा कुमारपालके वास्तविक खरूपसे अज्ञात रहने वाले इन राज्योंने गुजरातकी पताकाको उखाड़ फेंक देनेका प्रयत्न किया और इस प्रयत्नको कुमारपालने अपने पराक्रमसे निष्फल कर दिया। परन्तु उसके भाग्यमें तो और भी अधिक सफलता लिखी हुई थी / गुजरातकी दक्षिणकी सीमा पर कोंकणका राज्य था। उसकी राजधानी बम्बईके पास ठाणापत्तन थी और वहाँ शिलाहार वंशी राजा राज करते थे / इस कोंकण राज्यके दूसरी तरफकी दक्षिण सीमा पर कर्णाटकके कदम्ब वंशियोंका राज्य था जिनकी राजधानी गोपाक पहन (वर्तमान पोर्तुगीज बंदर, गोवा) थी। सिद्धराजकी माता मयणल्ला देवी इस राजवंशकी कन्या थी अतः कर्णाटक और गुजरातके बीच गादा सम्बन्ध था / इन दो सम्बन्धी राज्योंके बीच में आने वाला कोंकणका राज्य गुजरातके साथ युद्ध नहीं कर सकता था / अतः सिद्धराजके समयमें तो उसका गुजरातके साथ मैत्रीभाव ही रहा था / पर सिद्धराजकी मृत्युके पश्चात् जब कुमारपाल सिंहासनारूढ़ हुआ तब यह मैत्रीभाव विच्छिन्न हो गया और मारवाद और मालवाके राजाओंको कुमारपालके सामने सिर ऊँचा करते देख कर कोंकणके गर्विष्ठ राजा मल्लिकार्जुनको भी गुजरात पर आक्रमण करनेकी अभिलाषा जागृत हुई / कुमारपालने उसके इस मनोरथको निष्फल बनानेके लिए मन्त्रिराज उदयनके पुत्र दण्डनायक (सेनापति) आंबड भट्टको सेनापति बना कर एक फौज कोंकणकी ओर रवाना की / मारवाड और मालवा आदि प्रदेशोंकी रक्षाके लिए गुजरातकी बहुत सेना रुकी हुई थी अतः आंबडके पास उचित सैन्य प्रखर था और इसीलिए प्रथम चदाईमें गुजरातकी सेनाको हार खा कर पीछे लौटनेके लिए बाध्य होना पड़ा। पाल्नु

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