Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 199
________________ सोमप्रभावार्यकतवेण वि कालेण काऊण तवं जिणागमुद्दिढं / गंभीरस्स वि सुर्य-सागरस्स पारंगयो एसो॥ सब-समय-मसंभव-गुणोह-कलिओ विमाविउ हियए / सिरिदेवचंद-गुरुणा एसो गणहर-पए उपियो / हेम-समच्छवि-देहो चंदो / जणाण जणिय-बाणंदो / तचो इमो पसिद्धो नामेणं हेमचंयोति॥ नियं सहावंउ बिय समग-लोओवयार-कय-चित्तो / सो देवयाइ वुत्तो विहरतो विविह-देसेसु // गुजर-बिसयं मुत्तुं मा कुणसु विहारमन्न-देसेसु / काहिसि परोवयारं जेणित्य ठिओ तुमं गव्यं // तो तीए वयणेणं देसंतर-विहरणाउ विणियत्तो / चिहइ इहेव एसो पडिषोहंतो भविय-वर्ग॥ . बुह-यण-चूडामणिणो भुवण-पसिद्धस्स सिद्धरायस्स / संसय-पएसु सबेसु पुच्छणिजो इमो जागो .. एअस्स देसणं निसुणिऊण मिच्छत्त मोहिय-मई वि / जयसिंहनिवो जाओ जिर्णिद-धम्माणुरत्त-मणो / तत्तो तेणित्य पुरे रायविहारो कराविओ रम्मो / चउ-जिणपडिम-समिद्धो सिद्धविहारो य सिद्धिपुरे // जयसिंहदेव-वयणा निम्मियं सिद्धहेम-चागरणं / नीसेस-सह-लक्खण-निहाणमिमिणा मुर्णिदेण // // बमभोवमेय-वाणी-विसालमेयं अपिच्छमाणस्स / भासि खणं पिन तिची चित्ते जयसिंहदेवस्स // तो जइ तुमं पि वंछसि धम्म-सरूवं जहडियं नाउं / तो मुणिपुंगवमेय पुच्छसु होऊण भत्ति-परो॥ ६.८.कुमारपालस्य हेमचन्द्रसूरिपार्वे गमनम् , हेमचन्द्रसूरेः कुमारपालं प्रति सदोषः। .. सम्मं धम्म-सरूव-साहगो साहिओ अमक्षेणं / तो हेमचंचसूर्रि कुमरनरिंदो नमइ निचं // . सम्मं धम्म-सरुवं तस्स समीवंमि पुच्छए राया / मुणिय-सयलागमत्यो मुणि-नाहो जपए एवं // . भव-सिंधु-तरी-तलं महल-कल्लाण-वलि-जलकुलं / कय-सयल-सह-समदयं जीवदयं चिय मणस धम्मं॥ आउं दीहमरोगमंगमसमं रूवं पगिहें बलं, सोहग्गं तिजगुत्तमं निरुवम्रो भोगो जसो निम्मलो। आएसेक्क-परायणो परियणो लच्छी अविच्छेदणी, होजा तस्स भवंतरे कुणइ जो जीवाणुकंपं नरो॥ नरयपुर-सरल-सरणी अवाय-संघाय-बग्ध-र्वण-धरणी / नीसेस-दुक्ख-जणणी हिंसा जीवाण सुह-हणणी॥ जो कुणइ परस्स दुहं पावइ तं घेव अणंतगुणं / लमंति अंबयाई नहि निंषतरुमि ववियंमि // जो जीव-वहं काउं करेइ खण-मित्तमत्तणो तित्तिं / छेयण-भेयण-पमुहं नरय-दुहं सो चिरं लहइ // . 5 दोहग्ग मुदग्गं जं जण लोयण-दुहावहं रुवं / जं परस-मूल-खय-खास-सास-कुट्ठाइणो रोगा॥ . चं कण्ण-नास-कर-चलण-कत्तणं जं च जीवियं तुम्छ / तं पुधारोविय-जीव-दुक्ख-रुक्खस्स फुरइ फलं॥ जो जीव-दयं जीवो नर-सुर-सिव-सोक्ख कारणं कुणइ / सो गय-पावो पावेइ अमरसीहो / कल्याणं // [भत्र जीवदयापतिपादकानि भमरसिंहादिकथानकानि ग्रन्थकारेण पर्णितानि / ].. ___9. कुमारपालस्य जीवदयाभिरुपिः। इय जीव-दया-रूवं धर्म सोऊण तुइ-चित्तेण / रमा भणियं मुणि-नाह ! साहिलो सोहणो धम्मो / एसो मे अभिरुइओ एसो चित्तमि मजा विणिविहो / एसो चिय परमत्येण घडए जुत्तीहिं न हु सेसो // मचंति इमं सधे बं उत्तम-असण-वसण-पमुहेसु / दिनेसु उत्तमाई इमाई सम्भंति पर लोए // . एवं सुह-दुक्खेसुं कीरतेसुं परस्स इह लोए / ताई चिय पर-लोए लम्भंति अणंत-गुणियाई // जो कुणइ नरो हिंसं परस्स जो जणइ जीविय-विणासं / विरएइ सोक्ख-विरहं संपाडइ संपया-भंस // सी एवं कुणमाणो पर-लोए पावर परेहितो / बहुसो जीविय-नासं सुह-विगर्म संपयोच्छेयं / / बसप्पा व लम्मा पभूपतरमित्व नस्थि संदेहो / विपनु कोरवेसुं लम्मति हि कोरवय //

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