Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith
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________________ कुमारपाळप्रतिबोध-संक्षेप का जुतं देव ! कयं तुमए जं इत्थ धम्म-ठाणंमि / अभयकुमारो सेट्ठी एसो सवेसरो विहिओ // षय-कूर-मुग्ग-मंडग-वंजण-वडयाइ-कय-चमक्कारं / सक्कार-पुत्वगं सावयाण सो भोयणं देइ // पत्याई पसत्थाई कुटुंब-नित्यारणत्यमत्थं च / एवं सत्तागारं कयं नरिंदेण जिण-धम्मे // इप जीव-दया-हेउं संसार-समुह-संतरण-सेउं / दाणं मोक्ख-निदाणं कहिऊण गुरू भणइ एवं // 28. सूरिप्रदत्तः शीलवतोपदेशः। जीव-दयं काउमणो मणुओ सीलं नरिंद ! पालिज / जम्हा जिणेहिं भणिओ मेहुण-सन्नाइ जीव-वहो // ... रमणीण संगमे होइ मेहुणं तं धणं विणा न हवे / होइ धणं आरंभाओ तत्य पुण नत्यि जीव-दया // अगणिय-कजा-ऽकजा निरग्गला गलिय-उभय-लोय-भया / मेहुण-पसत्त-चित्ता किं पावं जं न कुवंति // जलणो वि जलं जलही वि गोपयं पवओ वि सम-भूमी / भुयगो वि होइ माला विसंपि अमयं सुसीलाण // आणं ताण कुणंति जोडिय-करा दास व सखे सुरा मायंगाहि-जलग्गि-सीह-पमुहा वटुंति ताणं वसे / हुजा ताण कुओ वि नो परिभवो सग्गाऽपवग्ग-सिरी ताणं पाणि-तलं उवेइ विमलं सीलं न लुपंति बे॥ विप्फुरइ ताण कित्ती लहंति ते सग्ग-मोक्ख-सुक्खाई / सीलं ससंक-विमलं जे सीलवई व पालंति // [अत्र शीलवते शीलवत्यादिकथानकान्यनुसन्धेयानि / ] इय सील-धम्ममायन्निऊण भव-जलहि-तारण-तरंडं / संविग्ग-मणो राया गिण्हइ नियमं गुरु-समीवे // भट्टमि-चउद्दसी-पमुह-पव-दियहे सुनिच्चमेव मए / कायवं बंभवयं भयवं ! मण-वयण-काएहि // F29. तपोव्रतविषयकोपदेशः। अह वागरियं गुरुणा-जीव-दया-कारणं तवं कुजा / छजीव-निकाय-वहो न होइ जम्हा कए तम्मि // जह कंचणस्स जलणो कुणइ विसुद्धिं मलावहरणेणं / जीवस्स तहेव तवो कम्म-समुच्छेय-करणेण // * ' कम्माइं भवंतर-संचियाइं तुर्दृति किं तवेण विणा / डमंति दावानलमंतरेण किं केण वि वणाई // अगणिय-तणुपीडेहिं तित्थयरेहिं तवो सयं विहिओ / कहिओ तह तेहिं चिय तित्थयरत्तण-निमित्तमिमो॥ कुसुम-समाओ तियसिंद-चक्कवट्टित्तणाइ-रिद्धीओ / जाणसु तव-कप्प-महीरुहस्स सिव-सुक्ख-फलयस्स // पारसवरिसाइं तवो पुव्व-भवे रुप्पिणीइ जह विहिओ / तह कायचो नीसेस-दुक्ख-खवणत्थमन्नेहिं // [अत्र तपोवते रुक्मिण्यादीनां कथा अनुसन्धेयाः।] एवं तव-माहप्पं मुणिऊण तवो नरिदं ! काययो / सो पज्झो छम्भेओ अभिंतरओ य छन्भेओ // तं जहा'अणसणमुणोयरिया वित्ती-संखेवणं रस-चाओ / काय-किलेसो संलीणया य बज्झो तवो होह // पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ / झाणं च उस्सगो वि य अभिंतरओ तवो होइ // ' रना भणियं अट्ठमि-चउद्दसी-पमुह-पच्च-दियहेसु / जिण-कल्लाण-तिहीसु य सत्तीइ तवं करिस्सामि // एवं पारस-भेयं तव-धम्मं अक्खिउं गुरूं भणइ / वारसविहं नराहिव ! सुण संपइ भावणा-धम्मं // 30. शुभभावनोपदेशः। सुह-भावणा-परिगओ जीवदयं पालिङ खमइ जीवो / सो असुह-भावणाए गहिओ पावं न किं कुणइ / / वंझं बिति जहित्थ सत्थ-पढणं अत्यावषोहं विणा सोहग्गेण विणा मडप्प-करणं दाणं विणा संभमं / सन्मावेण विणा पुरंधि-रमणं नेहं विणा भोअणं एवं धम्म-समुजयं पि विबुहा ! सुद्धं विणा भावणं // //

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