Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith
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________________ सोमप्रभाचार्यकृतनिवडिय-सुहडभावाण ताण को वहउ एत्य समसीसि / पर-रमणि-संकडे निवडिया वि न मुयंति ने मेरे // इणमेव धम्म-धीय इणमेव विवेय-कणय-कसवट्टो / इणमेव दुक्करं जं कीरइ परदार-विरह-वयं // यः पालयति निर्व्याज परस्त्रीविरतिव्रतम् / परोह च स श्रेयः पुरन्दर इवाश्नुते // . [अत्र पुरन्दरकथाऽनुसन्धेया।] 58 37. परिग्रहषिरत्युपदेशः। दुपय-चउप्पय-धण-धन्न-खेत्त-घर-रुप्प-कणय-कुप्पाण / जं परिमाणं तं पुण अणुवयं पंचमं विति // जीवो भवे अपारे गरुय-परिग्गह-भरेण अक्कतो / दुह-लहरि-परिक्खित्तो बुहुइ पोओ.जलहिम्मि // धम्मारामखयं खमा-कमलिणी-संघाय-निग्घायणं, मजाया-तडि-पाडणं सुह-मणो-हंसस्स निवासणं / बुद्धि लोहमहण्णवस्स खणणं सत्ताणुकंपा-भुवो, संपाडेइ परिग्गहो गिरिनई-पूरो व वहृतो॥ लोह-परिचत्त-चित्तो जो कुणइ परिग्गहस्स परिमाणं / सो परमवे परिग्गहमपरिमियं लहइ नागो छ / [अत्र नागकथानकमनुसन्धेयम् / ] 38. दिग्वतोपदेशः। दससु दिसासु जं सयल-सत्त-संताण ताण-कय-मइणो / गमण-परिमाण-करणं गुणवयं विंति तं पडम // जीवो धणलोभ-ग्गह-गहिय-मणो जत्थ जत्थ संचरइ / विद्दवइ पाणिणो तत्थ तत्य तत्चायपिंडो॥ संतोस-पहाण-मणो दिसासु जो कुणइ गमण-परिमाणं / सो पावइ कल्लापां इत्य वि जम्मे सुबंधु // [अत्र सुबन्धुकथानकमनुसन्धेयम् / 39. भोगोपभोगव्रतोपदेशः। बीयं गुण-वयं पुण भोयणओ कम्मओ य होइ दुहा / तं भोयणओ भोगोवभोग-माणं विहेयवं // सइ.भुजइ त्ति भोगो सो पुण आहार-पुप्फमाईओ / उवभोगो य पुणो पुण उवभुजइ भुवण-विलयाई // असणस्स खाइमस्स य विरई कुज्जा निसाइ आ जीवं / महु-मज-मंस-मक्खण-पमुहाण य सबहा नियमं // पनरस-कम्मादाणाई कोट्टवालाइणो नियोगा य / तं कम्मओ पणीयं तत्थ करिजा बुहो जयणं // पुरुषः पालयन् भोगोपभोगव्रतमादृतः / जयद्रथ इवाभीष्टं लभतेऽत्रापि जन्मनि // [अत्र जयद्रथकथानकमनुसन्धेयम् / ] 40. अनर्थ-दण्डविरत्युपदेशः। दोस-भुयंग-करंडो अणत्थ-दंडो अणत्य-दुमसंडो / जं तस्स विरमणं तं वनंति गुण-वयं तइयं // तणु-सयण-घराईणं अत्थे जं जंतु-पीडणं दंडो / सो होइ अत्थ-दंडो अणत्य-दंडो उ विवरीओ // पावोवएस-अवज्झाण-हिंसदाण-प्पमाय-भेएहिं / चउहा अणत्थ-दंडो अणंत-नाणीहिं निहिट्ठो॥ करिसण-वणिज्ज-हय-वसण-छेय-गोदमण-पमुह-पावाण / जो उवएसो कीरइ परस्स पावोवएसो सो // वरिसंतु घणा मा वा, मरंतु रिउणो, अहं निवो होज / सो जिणउ, परो भजउ, एवं चिंतणमवज्झाणं // हल-मुसलु-क्खल-सगडग्गि-खग्ग-धणु-बाण-परसु-पमुहाणं / हिंसा-निबंधणाणं समप्पणं हिंसदाणमिणं // जं मज-विसय-विकहाइ-सेवणं पंचहा पमाओ सो। अह व घय-दुद्ध-तेल्लाइ-भायण-च्छायणाऽऽलस्सं // कय-परपीडमसंबद्ध-भासणं वजरंति मोहरिनं / तं पुण अणत्थ-दंडस्स पढममंगं ति मोत्तवं // होइ वयणं सुसंधं महुरो सदो तह त्ति जं भणियं / आणं कुणंति तियसा वि तस्स जो चयइ मुहरतं / बजिय-अणत्य-दंडो खंदो जाओ निवो पुरिस-चंदो / मोहरियं काउं किंचि रुह-जीवो दुहं पत्तो // [भत्र रुद्रजीवडष्टान्तोऽनुसन्धेयः।]

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