Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 212
________________ कुमारपालप्रतिबोध-संक्षेप 41. सामायिकवतोपदेशः। जं समणस्स व सावज-जोग-वजणमरत्त-दुट्ठस्स / तं सम-भाव-सरूवं पढमं सिक्खा-वयं चिंति // जो राग-दोस-रहिओ गहिउं सामाइयं न खंडेइ / सो सावओ वि साहइ सागरचंदो पर-लोयं // [अत्र सागरचन्द्रदृष्टान्तोऽनुसन्धेयः।] 5 42. देशावकाशिकव्रतोपदेशः।। जं पुच्च-गहिय-सयल-बयाण संखेव-करणमणुदियहं / देसावगासियं तं मणंति सिक्खावयं वीयं // जीवो पमाय-बहुलो पमाय-परिवजणे हवइ धम्मो / ता कीरइ पइदियह संखेवस्सावि संखेवो॥ सच्छंद-पयाराई जहा अणत्थे पडंति डिंभाई / अनिजंतिय-वावारा जीवा निवडति तह नरए / तेणावाय-परंपर-विसम-विस-प्पसर-5मण-निमित्तं / निर्व्हि रक्खा-कंडयं व सिक्खावयं एयं / / अणुवित्तीए वि हु ओसहं व जो कुणइ वयमिणं मणुओ। पवणंजउ व पावइ सो इह लोए वि कसा // - [भत्र पवनञ्जयकथानकमनुसन्धेयम्।] 43. पौषधव्रतोपदेशः। आहार-देह-भूसण-अबंभ-वावार-चाय-रुवं जं / पवेसु पोसहं तं तइयं सिक्खा-वयं बिति // अहमि-चउद्दसी-पमुह-पव-दियहेसु जो कुणइ एयं / पावइ उभय-भवेसुं सो रणसूरु व कलाणं // [अत्र रणशूरकथानकमनुसन्धेयम् / / 5६४४.अतिथिसंविभागवतोपदेशा। साहूण संविभागो जो कीरइ मत्त पाण-पमुहेहिं / तं अतिहि संविमागं तुरियं सिक्खावयं विति // जो अतिहि-संविभागं परिपालइ पवर-सत्त-संजुत्तो / नरदेवी व सउन्नो इहावि सो लहइ कमाणे // . . [भत्र नरदेवकथानकमनुसन्धेयम् / ] एवं नरिंद ! तुह अक्खियाई एयाई बारस-चयाइं / रत्ना मणियं भयवं! अणुग्गहो मे फओ तुमए / पंच-मह-वय-मारो धुवं गिरिंदो व दुबहो ताव / तं जे वहंति सम्मं ते दुक्कर-कारए वंदे // ते वि हु सलाहणिज्जा न कस्स परिमिय-परिंग्गहा-मा / सक्कंति पालिङ जे इमाई पारस-चयाई वि. गुरुणा भणियं आणंद-कामदेवाइणों पुरा जाया / जेहिं परिपालियाई इमाई सावय-वयाई इ॥ इण्हि तु वर-गिहत्यो इहत्थि नामेणं छइओ सेही / परिमिय-परिग्गहो विहिय-पाव-चावार-परिहारो॥ जो अहिगय-नव-तत्तो संतोस-परो विवेय-रयण-निही / देव गुरु-धम्म-कज्जेसु दिन-निय-भुय-वित्त-धमो // सो अम्ह पाय-मूले पुवं पडिवविऊण भावेण / बारस-वयाइं एयाइं पालए निरइयाराई // रबा मणियं एसो आसि धणड्डो ति मज्झ मोरयो / साहम्मिउ त्ति संपइ बंधु व विसेसओ जाओ। मयवं ! अहं पि काहं सावय-धम्मस्स पारस-विहस्स / परिपालणे पयत्तं वसुहा-सामित्त-अणुरूवं // तो गुरुणा वागरियं नरिंद ! तुममेव पुन्नवंतो सि / जो एरिसो वि सावय-वयाण परिपालणं कुणसि // इय सोमप्पह-कहिए कुमार-निव-हेमचंद-पडिबद्धे / जिण-धम्म-पडिबोहे पत्यावो वनिओ तुरियो // // इत्याचार्यश्रीसोमप्रभाविरचिते कुमारपालप्रतियोधे चतुर्थः प्रस्खाया। m .. //

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