Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 213
________________ सोमप्रभाचार्यकृतअथ पञ्चमः प्रस्तावः। 45. कषायजयोपदेशः। अह गुरुणा वागरियं जो जीवदयं समीहए काउं / तेण कसायाण पराजयम्मि जत्तो विहेयशो // जम्हा कसाय-विवसो किञ्चमकिच्चं च किंपि अमुणतो / निद्दय-मणो पयट्टइ जीवो जीवाण पीडासु // तो कोह-माण-माया-लोमा चउरो चउबिहा हुंति / एक्विक्कसो अणंताणुबंधि-पमुहेहिं मेएहि // कलाकज-विचारण-चेयन्न-हरस्स विसहरस्सेव / कोवस्स कोऽवगासं मइमं मण-मंदिरे दिज्जा 1 // 46. क्रोधजयोपदेशः। सुहु जलणो जलंतो वि दहइ तं चेव जत्थ संलग्गो / कोह-जलणाउ जलिओ सठाणमन्नं परभवं च // जिण-पवयण-मेह-समुभवेण पसमामएण कोंव-दवं / विज्यवइ जो नरो होइ सिव-फलं तस्स धम्म-वर्ण / कोवेण कुगइ-दुक्खं जीवा पावंति सिंह-वग्ध छ / होउं खमा-परा पुण लहंति सग्गा-ऽपवग्ग-सुहं // . [अत्र सिंहव्याघ्रकथानकमनुसन्धेयम् / ] 47. मानजयोपदेशः। अट्ठ-मय-हाणेहिं मत्तो अंतो-निविठ्ठ-संकु छ / कस्स वि अनमंतो तिहुयणं वि मन्नइ तणं व नरो॥ मय-वट्टो उड-मुहो गयणम्मि गणंतओ रिक्खाई / अनिरिक्खिय-सुह-मग्गो भवावडे पडइ किं चोचं // . राया-ऽमच्चाईणं पि सेवओ माणवजिओ चेव / लहइ मण-वंछियत्यं पुरिसो माणी पुण अणत्यं // माणी उव्वेय-करो न पावए कामिणीण काम-सुहं / इत्थीण कामसत्थेसु कम्मणं महवं जम्हा // मोक्ख-तरु बीय-भूओ माण-स्थडस्स नत्थि धम्मो वि / धम्मस्स जो समए विणउ चिय वन्नियो मूलं // 5 // जाइ-कुलाइ-मएहिं नडिओ जीवो वि विडंबणं लहइ / तेहिं पुण वजिओ गोषणो व सुह-मायणं होई // [अथ गोधनकथानकमनुसन्धेयम् / 58 48. मायाजयोपदेशः। धम्म-वण-अलण-जाला मोह-महा-मयगलाण [जा] साला / कुगइ-बहू-वर-माला माया सुह-मइ-हरण-हाला // थेव-कए कवड-परो निविडं निवडतमावया-लक्खं / लक्खइ न जणो लगुडं पयं पियंतो बिडालोच॥ . माया-वसेण कवड-प्पओग-कुसला अकिञ्चमायरिठं / पत्ता इहेव सयमेव लजिउं नाइणी निहणं // [अत्र नागिनीकथाऽनुसन्धेया।] 5 49. लोभजयोपदेशः। जो कोह-माण-माया-परिहार-परो वि वनइ न लोहं / पोओ व सागरे सो भवम्मि बुडइ कु-कम्म-गुरू॥ 50 ससि-कर-धवला वि गुणा निय-आसय-वाह-कारए लोहे / आवदंति जल-कणा लोहम्मि व जलण-संसत्ते // इह लोयम्मि किलेसे लहिउं लोभाउ सागरो गरूए / पर-लोए संपत्तो दुग्गइ-दुक्खाई तिक्खाई॥ __ [अत्र सागरदृष्टान्तोऽनुसन्धेयः।] इय हेमसूरिमणि-पुंगवस्स सुणिऊण देसणं राया / जाणिय-समत्त-तत्तो जिण-धम्म-परायणो जाओ //

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