Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 210
________________ 119 सुमारपालप्रतिबोध-संक्षेप अथ चतुर्थः प्रस्तावः। . १.हेमसूरिकृतो द्वादशवतोपदेशः। बह वागरियं गुरुणा जीव-दयं धम्ममिच्छमाणेण / सिव-मंदिर-निस्सेणी विरई पुरिसेण कायचा // सोदिय-वसगाणं समत्व-पावासवा नियत्ताणं / जं अविरयाण जीवाण कहवि न वट्टइ जीव-दया // (अविरयाण कहमवि वट्टइ सम्म न जीवदया-पाठान्तरम् / ) जह कह वि सच-विरई मुणि-धम्म सरूवमक्खमो काउं / ता देसओ वि विरइं गिहत्य-धम्मोचियं कुबा // पुत्र-परिकम्मिय-चित्त-कम्म-जुग्गा जहा भवे भित्ती / तह विहिय-देस-विरई काउमलं सच-विरई पि // - भणियं च-. 'एसा वि देस-विरई सेविजइ सच-विरइ-कजेण / पायमिमीए परिकम्मियाण इयरा थिरा होई॥ पंच उ अणु-वयाइं गुण-वयाई हवंति तिन्नेव / सिक्खावयाइँ चत्तारि देस-विरई दुवालसहा // तत्र३२. प्राणातिपातविरत्युपदेशः। संकप्प-पुत्वयं जं. तसाण जीवाण निरवराहाण / दुविह-तिविहेण रक्षणमणुष्वयं बिंति तं पढम // चिर-जीवी वर-रुवो नीरोगो सयल-लोग-मण-इहो / सो होइ सुगइ-गामी सिवो व जो रक्खए जीवे // - [अत्र शिवकथानकमनुसन्धेयम्।] 34. मृषावादविरत्युपदेशः। . जं गो-भू-कन्ना-कूडसक्खि-नासापहार-अलियस्स / दुविह-तिविहेण वजणमणुष्वयं चिंति के बीयं // . भुयगो व अलियवाई होइ अवीसास-भायणं भुवणे / पावइ अकित्ति-पसरं जणयाण वि जणइ संता॥ सचेण फुरइ कित्ती सच्चेण जणम्मि होइ वीसासो / सग्गा-ऽपवग्ग-सुह-संपयाउ जायंति सच्चेण // - कुरुते यो मृषार्वादविरतिं सत्यवागवतः / मकरध्वजवन्द्रमुमयत्रापि सोऽश्नुते // __ [अत्र मकरध्वजदृष्टान्तोऽनुसन्धयः।] 35. अदत्तादानविरत्युपदेशः। घं चोरंकारकरस्स खत्त-खणणाइणा पर-धणस्स / दुविह-तिविहेण वजणमणुवर्य बिति तं तइयं // जो न हरइ पर-दवं इहावि सो लहइ न वह बंधाई / पर-लोए पुण पावइ सुर-नर-रिद्धीयो विउलायो॥ एकस्स चेव दुक्खं मारिजंतस्स होइ खणमेकं / जावज्जीव सकुडंषयस्स पुरिसस्स धण-हरणे // दई परस्स बज्मं जीयं जो हरइ तेण सो हणिओ / दव-विगमे जओ जीयमंतरंग पि जाइ खयं // जं खत्त-खणण-बंध-गहाइ-विहिणा परस्स धण-हरणं / पञ्चक्ख-दिट्ठ-दोसं तं चिट्ठउ दूरओ ताव // पर-वंचणेण घेत्तुं दितस्स वि पर-धणं पर-भवम्मि / पर-गेहे चिय वचइ दत्तस्स व वणिय-पुत्तस्स // [भत्र वणिकपुत्रदत्तकथाऽनुसन्धेया।] 5 36. परवारविरत्युपदेशः। जं निय-नियभंगेहिं दिवाणं माणुसाण तिरियाणं / परदाराणं विरमणमणुष्वयं विति तं तुरियं // घउ-विह-कसाय-मुक्को चउ-गइ-संसार-भवण-निविण्णो / जो धरह चउत्प-वयं सो लहइ चउत्प-पुरिसत्व 5. पा. च.१५ "5 .

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