Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith
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________________ सोमप्रभाचार्यकृतसचम-नरय निमित्वं कम्मं बद्धं पसन्नचंदेण / असुहाइ मावणाए सुहाइ पुण केवलं पतं // [भावनाविषयेऽत्र प्रसन्नचन्द्रादीनां कथानकाम्यनुसन्धेयानि।] मह पुच्छइ कुमर-नराहिराउ, मण-मक्कड-नियमण-संकलाउ / कह कीरहि बारह भावणाउ, तो अक्खइ गुरु घण-गहिर-नाउ // 30. भावना-खरूप-वर्णनम् / ते जहा-चलु जीविउ.जुवणु धणु सरीरु, जिम्व कमल-दलग्ग-विलग्गु नीरु / अहवा इहत्थि जं किं पि वत्थु, तं सव्वु अणिञ्चु हहा घिरत्यु // पिय माय भाय सुकलत्तु पुत्तु, पहु परियणु मित्तु सिणेहजुत्तु / पहवंतु न रक्खइ को वि मरणु, विणु धम्मह अन्नु न अस्थि सरणु // राया वि रंकु सयणो वि सत्तु, जणओ वि तणउ जणणि वि कलत्तु / इह होइ नडु व कुकम्मवंतु, संसार रंगि बहुरुक्षु जंतु // एकलउ पावइ जीवु जम्मु, एकल्लउ मरइ विढत्त-कम्मु / एकलउ परभवि सहइ दुक्खु, एकलउ धम्मिण लहइ मुक्खु // जहिं जीवह एउ वि अन्नु देहु, तहिं किं न अन्नु धणु सयणु गेहु / जं पुण अणन्नु तं एक-चित्तु, अजेसु नाणु दंसणु चरितु // . वस-मंस-रुहिर-चम्मऽट्ठि-बद्ध, नव-छिड़ झरंत मलावणद्ध / असुइ-सरूव-नर-थी-सरीर, सुइबुद्धि कह वि मा कुणसु धीर // मिच्छत्त-जोग-अविरइ-पमाय, मय-कोह-लोह-माया कसाय / पावासव सवि इमे मुणेहि , जइ महसि मोक्खु ता संवरेहि।. जह मंदिरि रेणु तलाइ वारि, पविसइ न किंचि ढक्किय दुवारि / पिहियासवि जीवि तहा न पावु, इय जिणिहि कहिउ संवरु पहाव परवसु अन्नाणु जं दुहु सहेइ, तं जीयु कम्मु तणु निजरेइ / जो सहइ सवसु पुण नाणवंतु, निजरइ जिइंदिउ सो अणंतु // जहिं जम्मणु मरणु न जीवि पत्तु, तं नत्यि ठाणु वालग्ग-मत्तु / उड्डा-ऽहो-चउदस-रज-लोगि, इय चिंतसु निचु सुओवओगि // सुह-कम्म-निओगिण कहवि लद्ध, बहु पावु करेविणु पुण विरुद्ध / जलनिहि-चुय-रयणु व दुलह बोहि, इय मुणिवि पमत्तु म जीव होहि // धम्मु त्ति कहंति जि पावु पाव, ते कुगुरु मुणसु निद्दय-सहाव / पइ पुन्निहि दुल्लहु सुगुरु पत्तु, तं वजसु मा तुहु विसय-सत्तु // इय बारह भावण सुणिवि राउ, मणमज्झि वियंभिय भव-विराउ / रजु वि कुणंतु चिंतइ इमाउ, परिहरिवि कुगइ-कारणु पमाउ // इप सोमप्पह-कहिए, कुमार-निव-हेमचंद-पडिबद्धे / जिणधम्म-प्पडिबोहे पत्थावो वणियो तालो। // इत्याचार्यश्रीसोममभरिचित कुमारपालप्रतिबोचे तृतीयः प्रखापः //

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