Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith
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________________ सोमप्रभाचार्यकृतसम्मं नाणेण वियाणिऊण एगिंदियाइए जीवे / तेसिं तिविहं तिविहेण रक्खणं अभय-दाणमिणं // जीवाणममय-दाणं यो देइ दया-वरो नरो निचं / तस्सेह जीवलोए कत्तो वि भयं न संभवइ // जं नवकोडी-सुद्धं दिजइ धम्मिय-जणस्स अविरुद्धं / धम्मोवग्गह-हेउं धम्मोवटुंभ-दाणमिणं // तं असण-पाण-ओसह-सयणा-ऽऽसणवसहि-वत्थ-पत्ताई / दायचं बुद्धिमया भवन्नवं तरिउकामेण // तं दायग-गाहग-काल-भाव-सुद्धीहिं चउहिं संजुत्तं / निवाण-सुक्ख-कारणमणंत-नाणीहिं पन्नत्तं // . जो देइ निजरत्थी नाणी सद्धा-जुओ निरासंसो / मय-मुक्को जुग्गं जइ-जणस्स सो दायगो सुद्धो॥ जो देइ धण-खेत्ताई जइ जणाणुचियमेअ-विवरीओ / सो अप्पाणं तह गाहगं च पाडेइ संसारे // जो चत्त-सब-संगो गुत्तो विजिइंदिओ जिय-कसाओ / सज्झाय-झाण-निरओ साहू सो गाहगो सुद्धो॥ कम्म-लहु-तणेण सो अप्पाणं परं च तारेइ / कम्म-गुरू अतरंतो सयं पि कह तारए अन्नं // पुवुत्त-गुण-विउत्ताण जं धणं दिजए कु-पत्ताण / तं खलु धुब्बइ वत्थं रुहिरेणं चिय रुहिर-लितं // दिन्नं सुहं पि दाणं होइ कु-पत्तंमि असुह फलमेव / सप्पस्स जहा दिन्नं खीरं पि विसत्तणमुवेइ // तुच्छं पि सु-पत्तंमि उ दाणं नियमेण सुह-फलं होइ / जह गावीए दिन्नं तिणं पि खीरत्तणमुवेइ // दिनेण जेण जइया जइ-जण-देहस्स होइ उवयारो / भत्तीए तम्मि कालेयं दिज्जइ काल-सुद्धं तं // अप्पाणं मन्नंतो कयत्थमेगंत-निजरा-हेउं / जं दाणमणासंसं देइ नरो भाव-सुद्धं तं // महया वि हु जत्तेणं बाणो आसन्न-लक्खमहिगिच्च / मुक्को न जाइ दूरं इय आसंसाए दाणं पि॥ . मोक्खत्थं जं दाणं तं पइ एसो विही मुणेयवो / अणुकंपा-दाणं पुण जिणेहिं कत्थ वि न पडिसिद्धं // पत्तंमि भत्ति-जुत्तो जीवो समयंमि थोयमवि दिंतो / पावेइ पावचत्तो चंदणपाल व कलाणं // [अत्र दानविषये चन्दनबालादीनां कथानकान्यनुसन्धेयानि / ] 15 55 26. कुमारपालस्य हेमचन्द्रसूरि प्रति स्खभिक्षाग्रहणप्रार्थना, राजपिण्डग्रहणे सूरेनिषेपण। एवं सोउं मुणि-दाण-धम्म-माहप्पमुल्लवइ राया / भयवं! गिण्हह मह वत्थ-पत्त-भत्ताइयं भिक्खं // तो वजरइ मुर्णिदो इमं महाराय ! राय-पिंडो त्ति / भरहस्स व तुह भिक्खा न गिहिउं कप्पइ जईणं // [राजपिण्डविषये भरतचक्रिकथाऽत्रानुसन्धेया।] इय गुरु-वागरियं भरह-चरियमायन्निउं मुणइ राया / जइ मह भिक्खा न मुणीण कप्पए राय-पिंडो ति // तत्तो भरहो व अहं पि भोयणं सावगाणं वियरेमि / गुरुणा वृत्तं जुत्तं अणुसरिउं उत्तम-चरितं // . 27. कुमारपालस्य सत्रागार-पौषधशालादिकरणम् / अह कारावइ राया कण-कोट्ठागार-पय-घरोवेयं / सत्तागारं गरुयाएँ भूसियं भोयण-सहाए / तस्सासन्ने रन्ना कारविया वियड-तुंग-वरसाला / जिण-धम्म-हत्थि-साला पोसह-साला अइविसाला // तत्थ सिरिमाल-कुल-नह-निसि-नाहो नेमिनाग-अंगरुहो / अभयकुमारो सेट्ठी कओ अहिट्ठायगो रबा // इत्यंतरंमि कवि-चक्कवट्टि-सिरिवाल-रोहण-भवेण / बुहयण-चूडामणिणा पयंपियं सिद्धवालेण // देव-गुरु-पूयण-परो परोवयारुजओ दया-पवरो / दक्खो दक्खिन्न-निही सच्चो सरलासओ एसो // किञ्च- . क्षिप्त्वा तोयनिधिस्तले मणिगणं रत्नोस्करं रोहणो रेवाऽऽवृत्य सुवर्णमात्मनि दृढं षट्दा सुवर्णाचलः / . 11 मामध्ये च धनं निधाय धनदो बिभ्यन् परेभ्यः स्थितः किं स्यात् तैः कृपणैः समोऽयमखिलार्थिभ्यः स्वमयं ददन् /

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