Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith
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________________ कुमारपालप्रतिबोध-संक्षेप बाहड-महत्तमणं उद्धरिओ एस तुह पसाएण / तिहुयण-भरणुवरिउ व पुंजिओ सहइ तुज्झ जसो // तो उत्तरि सतुंजयाओ निय-नयरमागओ राया / उजिंते नेमिजिणो न मए नमिओ ति घरेह // पह सहा-निसन्चो सुगमं पज्जं गिरिम्मि उजिंते / को कारविउं सक्को ?, तो भणिओ सिद्धवालेण // प्रष्ठा वाचि प्रतिष्ठा जिनगुरुचरणाम्भोजभक्तिर्गरिष्ठा श्रेष्ठाऽनुष्ठाननिष्ठा विषयसुखरसास्वादसक्तिस्त्वनिष्ठा / पंहिष्ठा त्यागलीला खमतपरमतालोचने यस्य काष्ठा धीमानाम्रः स पद्यां रचयितुमचिरादुजयन्ते नदीष्णः॥ मुक्तं त्वयोक्तमित्युक्त्वा पद्यां कारयितुं नृपः / पुत्रं श्रीराणिगस्यानं सुराष्ट्राधिपतिं व्यधात् // यां सोपानपरम्परापरिगतां विश्रामभूमीयुतां स्रष्टुं विष्टपसृष्टिपुष्टमहिमा ब्रह्मापि जिलायितः / मन्दस्त्रीस्थविरार्भकादिसुगमा निर्वाणमार्गोपमां पद्यामाम्रचमूपतिर्मतिनिधिनिमपियामास ताम् // इय सोमप्पह-कहिए कुमारनिव-हेमचंद-पडिबद्धे / जिणधम्म-प्पडिबोहे समथिओ बीय-पत्थावो // 1 // .. इत्याचार्यश्रीसोमप्रभविरचिते कुमारपालप्रतियोधे द्वितीयः प्रस्तावः // अथ तृतीयः प्रस्तावः $$ 25. कुमारपालाय हेमसूरिप्रदत्तो दानोपदेशः / अह जंपइ मुणिनाहो जीव-दया-लक्खणस्स धम्मस्स / कारण-भूअं भणियं दाणं पर-दुक्ख-दलणं ति // नो तेसिं कवियं व दक्खमखिलं आलोयए सम्महं. नो मिल्लेह घरं कमंकवडिया दासि व तेसिं सिरी। 155 सोहग्गाइ-गुणा चयंति न गुणाऽऽबद्ध व तेसिं तणुं, जे दाणंमि समीहियत्थ-जणणे कुवंति जतं जणा // . दाणं पुण नाणा-ऽभय-धम्मोवटुंभ-भेयओ तिविहं / रयणत्तयं व सग्गा-पवग्ग-सुह-साहणं भणियं // नाणं तत्थं दु-भेयं मिच्छा-नाणं च सम्म-नाणं च / जं पाव-पवित्ति-करं मिच्छा-नाणं तमक्खायं // तं च इमं वेजय-जोइसत्थ-रस-धाउवाय-कामाणं / तह नट्ट-सत्थ-विग्गह-मिगयाण परूवगं सत्थं // जंजीव-दया-मूलं समग्ग-संसार-मग्ग-पडिकूलं / भाव-रिउ-हियय-सूलं तं सम्मं नाणमुद्दिढें // तं पुण दुवालसंगं नेयं सबन्नुणा पणीयं ति / मोक्ख-तरु-बीय-भूओ धम्मो चिय वुच्चए जत्थ // किश्चसम्मत्त-परिग्गहियं सम्म-सुयं लोइयं तु मिच्छ सुयं / आसअउ सोआरं लोइय-लोउत्तरे भयणा // नाणं पितं न नाणं पाव-मई होइ जत्थ जीवाणं / न कयावि फुरइ रयणी सूरंमि समुग्गए संते // नाणं मोह-महंधयार-लहरी-संहार-सूरुग्गमो, नाणं दिट्ठ-अदिट्ठ-इट्ठ-घडणा-संकप्प-कप्प-डुमो / नाणं दुञ्जय-कम्म-कुंजर-घडा-पंचत्त-पंचाणणो, नाणं जीव-अजीव-वत्थु-विसरस्सालोयणे लोअणं // नाणेण पुन्न-पावाइं जाणिउं ताण कारणाई च / जीवो कुणइ पवित्तिं पुन्ने पावाओ विणियत्तिं // पुने पवत्तमाणो पावइ सग्गा-पवग्ग-सोक्खाई / नारय-तिरिय-दुहाण य मुचइ पावाओ विणियत्तो // जो पढइ अउच्वं सो लहेइ तित्थंकरत्तमन्न-भवे / जो पुण पढावइ परं सम्म-सुयं तस्स किं भणिमो // जो उण साहेज भत-पाण-चर-वत्थ-पुत्थयाईहिं / कुणइ पढताणं सो वि नाण-दाणं पयट्टेइ // नाणमिणं दिताणं गिण्हंताणं च मुक्ख-प(व?)रदारं / केवल-सिरी सयं चिय नराण वच्छत्थले लुङद //

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