Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 205
________________ 194 सोमप्रभाचार्यकृततो वनरियं इमिणा इत्तो सारहि ! रहं नियत्तेसु / चालेसु मंदिरं पइ तेणावि तहेव तं विहियं // दई कुमरमुर्वितं रविं व नलिणी विसट्ट-मुह-कमला / जा आसि पुत्वमिहि तु पिच्छिउं तं नियत्तं सा // राइमई खेय-परा परसु-नियत्त व कप्प-रुक्ख-लया / मुच्छा-निमीलियच्छी सहस ति महीयले पडिया // 10 सत्थी-कया सहीहिं बाह-जलाविल-विलोयणा भणइ / हा! नाह! किमवरद्धं मए जमेवं नियत्तो सि॥ जइ वि तुमए विमुक्का अहं अहन्ना तहा वि मह नाह ! / तुह चलण चिय सरणं ति निच्छिउं सा ठिया घाला // दाऊण वच्छरं दाणमुजयंते पवन-चारित्तो / चउ-पन्नासदिणंते लहइ पहू केवलं नाणं // तो नगरागर-गामाइएसुं पडिबोहिऊण भविय-जणं / सो वास-सहस्साऊ इहेव अयले गओ मुक्खं // रना भणियं भयवं ! अन्ज वि तक्काल-संभवं किमिमं / चिट्ठइ दसार-मंडव-पमुहं तो जंपियं गुरुणा // m तक्काल-संभवं जं तं न इमं किं तु थेव-काल-भवं / तमिमं पुण जेण कयं कहेमि तं तुज्झ नर-नाह ! // 22. पादलिप्तसूरिवर्णनम् / गुरुनागहत्धि-सीसो बालो वि अ-बाल-मइ-गुणो सुकई / कइया वि कंजियं घेत्तुमागओ कहइ गुरु-पुरओ // . अंबं तंबच्छीए अपुफियं पुष्पदंत-पंतीए / नव-सालि-जियं नव-बहूइ कुडएण मे दिन्नं // गुरुणा भणिओ सीसो वच्छ ! पलित्तोसि जं पढसि एवं / सीसो भणइ पसायं कुरु मह आयार-दाणेण // एवं ति भणइ सूरी तो पालित्तो जणेण सो वुत्तो / जाओ य सुय-समुद्दो आयरिओ विविह-सिद्धि-जुओ॥५. काऊण पाय-लेवं गयणे सो भमइ नमइ तित्थाई / सुणइ सुरह-निवासी भिक्खू नागजुणो एवं // $$23. नागार्जुनभिक्षुवर्णनम् / सो पत्थइ पालित्तं पयच्छ ! निय-पाय-लेव-सिद्धिं मे / गिण्ह मह कणय-सिद्धिं, तत्तो पालितओ भणइ // निकिंचणस्स किं कंचणेण किं चत्थि मे कणय-सिद्धी / तुह पाय-लेव-सिद्धिं च पाव-हेउ त्ति न कहेमि // तो कय-सावय-रूवेण भिक्खुंणा आगयस्स गिरिनयरे / गुरुणो गुरु-भत्तीए जलेण पक्खालिया चलणा // पय-पक्खालण-सलिलस्स गंधओ ओसहीण नाऊण / सत्तुत्तरं सयं तेण पाय-लेवो सयं विहिओ // ... " तबसओ गयणे कुक्कुडो व उप्पडइ पडइ पुण भिक्खू / तो कहइ जहावित्तं गुरुणो तेणावि तुटेण // . भणिओ भिक्खू तंदुल-जलेण कुरु पाय-लेवमेयं ति / कुणइ तह चिय भिक्खू जाया नह-गमण-लद्धी से // पालित्तयस्स सीसोव कुणह नागवणो तओ भतिं / नेमि-चरियाणुगरणं सब पि कयं इमं तेण // तं सोउं भति-परो नरेसरो नेमिनाह-नमणत्थं / गिरिमारुहिउं वंछइ तो भणिओ हेमसूरीहिं॥ मर-घर ! विसमा पना अओ तुमं चिट्ठ चडउ सेस-जणो / लहहिसि पुन्नं संबो व भावओ इह ठिो वि तुम // ". तो रन्ना पट्टविया पहुणो पया पहाण-जण-हत्थे / तत्थ ठिएणावि सयं गुरु-भत्तीए जिणो नमिओ // भह जिण-महिमं काउं अवयरिए रेवयाओ सयल-जणे / चलिओ कुमारवालो सत्तुंजय-तित्थ नमणत्थं // 24. कुमारपालस्य शत्रुञ्जयतीर्थयात्राकरणवर्णनम् / बचो तत्य कमेणं पालित्ताणंमि कुणई आवासं / अह कुमरनरिंदो हेमसूरिणा जंपिओ एवं // बालित्ताणं गामो एसो पालित्तयस्स नामेण / नागजुणेण ठविओ इमस्स तित्थस्स पूजत्थं // हा-पइहाण-भरुपच्छ-मन्नखेडाइ-निवइणो जं च / धम्मे ठविया पालित्तएण तं कित्तियं कहिमो // ससुंजयमारूढो राया रिसहस्स कुणइ गुरुभत्तिं / सो पासायं दद्दूण विम्हिओ जंपिओ गुरुणा //

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