Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 197
________________ सोमप्रमाचार्यकृत ___[मत्र प्रन्यकारेण मूलदेवकथानकं वर्णितम् / / इस धम्म-देसणामय-रसेण सेचम्मि भूमिणाहस्स / हिययम्मि समुल्लसिओ जिणिंद-धम्माणुराय-दुमो मणियं निषेण भयवं ! कहियमिणं उभय-मव-हियं तुमए / अन्नो पिओ वि सबो जंपइ इह-मन-हि / ता समयम्मि विमुत्तुं तणं व रजं विवेय-गिरि-वजं / पडिवजिऊण धम्मं सहलं काहं मणुय-जम्मं // ता वंदिउं मुर्णिदं निय-मंदिरमागओ महीनाहो / धम्मोवएस-विसरं सुमरंतो गमइ दियहाई // . अह पावसो पयट्टो संपाडिय-पहिय-हियय-संघो / समरट्ट-मारनट्टो कयंब-संदह-अलिवट्टो // जत्य विरहग्गि-डझंत-विरहिणी-हियय-लद्ध-पसरेण / धूम-भरेण घण-मंडलेण मलिणी-कयं गगणं // नव-मेह-पिययमेणं समप्पियं जत्थ तडि-लयालोयं / कणयमयाभरणं पिव पयडंति दिसा-पुरंधीओ // . . नव-पाउस-नरखइ-रज-घोसणा-डिडिमो व सव्वत्थ / जग्गविय-विसम-बाणो वियंभिओ मेह-गजिरवो // निवडंति माणिणी-माण-खंडणे विलसमाण-सत्तीओ / जस्सि जल-धाराओ अणंग-सर-धोरणीओं // .. तस्सिं चरि-खित्तेसुं नरवइणा वावियाई धन्नाई / तेसिं दंसण-हेउं कयावि राया विणिक्खंतो॥ तम्मि समए करिसगेहिं धन्न-मज्झाओ पुवमुवखणिउं / पुंजीकएसु निप्फल-तणेसु पजालिओ जलणो॥ तत्थ जलणेण डझंत-विग्गहं गब्भ-निन्भरं भुयगिं / दहुँ संविग्गेणं रन्ना परिभावियं एयं // अहह इमो घरवासो परिहरणिज्जो विवेयवंताणं / बहु-जीव-विणास-करा आरंभा जत्थ कीरंति // एवं संविग्ग-मणो राया निय-मंदिरम्मि संपत्तो / हकारिऊण पुच्छइ एगते सावयं एगं // संपइ सिरिदत्तगुरू गुणवंतो कत्थ विहरइ पएसे / सो कहइ डिंडुयाणय-पुरम्मि मुणिपुंगवो अस्थि // तो राया रयणीए कस्स वि अनिवेइऊण निक्खंतो / तुरयंमि समारुहिऊण डिंडुयाणय-पुरे पत्तो॥ सिरिदत्तगुरुं नमिऊण तस्स कहिऊण नियय-वृत्तंतं / जंपइ संपइ काउं अणुग्गहं देहि मह दिक्खं // गुरुणा वुत्तं जुत्तं उत्तम-सत्तस्स तुज्झ नर-नाह ! / र तणं व मुत्तुं करेसि जं संजम-ग्गहणं // नहि संजमाउ अन्नो संसारुच्छेय-कारणं अस्थि / नव-जलहरं विणा किं निवडइ दवानलं को वि॥ . रन्ना अणप्पमुलं एवं एक्कावलिं समप्पेउं / जिणधम्म-निम्मल-मणा पयंपिआ सावया एवं // कारवह जिणाययणं इमीए एक्कावलीइ मुल्लेण / तेहि वि तह ति पडिवजिऊण तं शत्ति कारवियं // तं अत्यि तत्थ अन्ज वि चउवीस-जिणालयं जिणाययणं / पुत्रं व मुत्तिमंतं जसभद्द-निवस्स बं सहए। रना पुण पडिवन्ना सिरिदत्त-गुरुस्स चलण-मूलम्मि / अंतर-रिउ-वह-दक्खा दिक्खा निसियासि-धार // एगंतरोववासे जा जीवं अंबिलं च पारणए / काहं ति तेण विहिया वय-गहण-दिणे चिय पइन्ना // सुय-सागर-पारगओ रि-पयं पाविऊण जसभदो। भुवणे चिरं विहरिओ पडिबोहंतो भविय-वग्मं // . स-समय परसमय-विऊ समए तेणावि निय-पए ठविओ। निजिय-पञ्जुन्न-भडो पजुन्नो नाम वर-सूरी // मह जसभद्दो सूरी तिब-तवचरण-सोसिय-सरीरो। निय-परिवार-समेओ आरूढो उज्जयंतगिरिं॥ रेवयगिरिंद-मउडं व सुकय-लच्छी-विलास-कमलं व / भव-जलहि-जाणवत्तं व जिणहरं गणहरो पचो / नमिऊण नेमिनाहं पमजिउं निवसिऊण तस्स पुगे / पजुनसूरि-पमुहं निय-परिवारं भणइ एवं // राग-दोस-विमुक्को चिर-सेविय-नाण-दसण-चरित्तो / निच्छय-नएण तित्यं अप्प चिय वुचए जइ वि॥ तह वि हु ववहार-नयेण जो पएसो पणह-पावाण / तित्थंकराण पएहिं फरिसिओ सो परं तित्यं / इह दिक्खा-पडिवत्ती नाणुप्पत्ती विमुत्ति-संपत्ती / नेमिस्स जेण जाया तेणेसो तित्थमुजितो॥ अन्नत्य वि मेलिस्सं निस्संदेहं दुहावहं देहं / तचो वरं पसत्थे तित्थे इत्ये वि मेल्लेमि // इस भणियं पञ्चक्लइ विण-पलक्खं पबिहाहारं / वारंतस्स वि पशुबसूरिणो सपरिवारस // पउमासणोवविछो परिषर-सबर-गत-परिकम्मो / सिरि नेमिनाह-पडिमा मुहसंकय-निहिय-नयण-यो। .

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