Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith
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________________ अनामनामेण // . छमारपासप्रतिबोध-संक्षेप संवत्य वि राग-दोस-वबिओ परम-तत्त-लीण-मणो / मुणिपुंगवो मुणियागम-सवण-समुलसिय-संवेगो।। पुष-महारिसि-मग्मो दूसम-समये वि सेविओ सम्मं / तेरस-दिणावसाणे पत्तो तियसालयं सूरी // तपो पजुबगुरु विपरंतो सयल-संघ-परिओ स / सुत्तत्थ-पयडण-परो परोवयारं चिरं कुणइ / / सर-सुहो सुइ-मुहओ वाइज्जतो समग्ग-लोएण / ठाणयपगरण-रूवो जस्सऽज वि फुरद जस-पव्हो॥10 तस्स गुणसेणसूरी सीसो वर-संजमुजओ जाओ / जस्स गुण बिय पाणा अंतररिउ-वम्ग-निग्गहणे // सीसो खमग्ग-लग्गो तस्सासी देवचंदसूरि ति / चंदेण व दिय-राएण जेण आणंदियं भुवणं // कय-सुकय-कुमुय-पोहा चउर-बठर-प्पमोय-संजणणी / संतिजिणचरित्त-कहा जुण्ह व वियंभिया क्त॥ जे ठाणएसु ठविया पजुन्न-मुणीसरेण धम्म-दुमा / काऊण ताण विवइं ते जेण लहाविआ बुडिं। बस्स चलणारविंदं चरित्त-लच्छी-विलास-वासहरं / मुणि-ममरेहिँ अमुक्कं जिणमय-मयरंद-लुद्धेहिं // सो विहरंतो मही-मंडलम्मि खंडिय-पयंड-भावरिऊ / सयल-भुवणेक्क-बंधू धंधुक्यं पुरवरं पत्तो॥ सो तत्थ पणमणत्यं समागयाणं जणाण पउराणं / संसारासारत्तण-पयासिणिं देसणं कुणइ // तं सोउं संविग्गों सरीर-सुंदेर-विजिय-सुरकुमरो / एक्को वणिय-कुमारो कयंजली भणिउमाढत्तो॥ भयवं ! भवण्णवाओ जम्म-जरा-मरण-लहरि-हीरंतं / मं नित्थारसु सुचारित्त-जाणवत्त-पयाणेण // गुरुणा वुत्तं पालय ! किं नामो कस्स वा सुओ तं सि / तो तस्स माउलेणं पयंपिकं नेमिनामेण // 7. हेमचन्द्रसूरेजन्मादिवृत्तान्तः। भयवं ! इहत्यि हत्थि व मोढकुल-विंझ-संभवो भद्दो / कय-देव-गुरु-जणच्चो चच्चो नामा पहाण-वणी॥ निम्मल-कुल-संभ्या भूरि-गुणाभरण-भूसिय-सरीरा / तस्सत्थि गेहिणी चाहिणि ति सा होइ मह बहिणी // जीए विमलं सीलं दटुं लाए चंदमा निचं / चरम-जलहिम्मि मजइ कलंक-पक्खालणत्थं व // .. ताणं तणओ एसो निरुवम-रूवो पगिढ-मइ-विहवो / भुवणुद्धरण-मणोहर-चिंचइओ चंगदेवो ति॥ गन्मावयार-समए इमस्स जणणीए सुविणए दिहो / निय-गेहे सहयारो समुग्गओ वुटिमणुपत्तो // जा पुष्फ-फला-रंभो तत्तो मुत्तूण मंदिरं मज्झ / अन्नत्थ महारामे मणाभिरामे इमो पत्तो॥ छायाए पल्लवेहि कुसुमेहिं फलेहिं तत्थ पवरेहिं / बहुय-जणाणं एसो उवयारं काउमाढत्तो॥ गम्भगए वि इमस्सि इह देसे नहमसिव-नामं पि / तह अणभिन्नो जाओ लोओ दुभिक्ख-दुक्खस्स // 'परचक्क चरड-चोराइ-विदवा दूरमुवगया सबे / न फुरति घूय-पमुहा मेह-च्छन्ने वि दिणनाहे // इय तस्स जम्म-दियहे जायाइं दिसा-मुहाइं विमलाई / देव-गुरु-वंदणेण धम्मत्थीणं मणाई व // हरिस-जणणो जणाणं सुयणो व समीरणो समुल्लसिओ / रय-पसमणं निवडियं गुरूण वयणं व गंधजलं // भवणम्मि कुसुम वुढी सुसामि-तुहि व सेवए जाया / कब-गुणो व सहियए फुरिओ गयणंमि तूर-रवो // एसो परिओसकरो बालत्तणओ वि अमय-घडिओ छ / रयणं व कराओ करं संचरिओ सयल-लोयस्स // संपर इमस्स चित्तं न रमइ अन्नत्थ वजिउं धम्मं / माणस-सरंमि मुत्तुं हंसस्स व पलल-जलेसु // गुरुणा वुत्तं जुत्तं जं कुणइ इमो चरित्त-पडिवत्तिं / जेण सो परमत्थो जणणी-दिहस्स सुविणस्स // गहिऊण वयं अवगाहिऊण नीसेस-सस्थ-परमत्यं / तित्थकरो व एसो जणस्स उवयारओ होही। तत्वो इमस्स जणयं च नामेण भणह तो तुम्मे / जहचंगदेवमेयं वय-गहणत्थं विसजेइ // मो बहु-सिणेह-जुत्तो बहुं पि भणिओ विसजा न पुचं / तत्तो पुत्तो वि दढं कउअमो संजम-गहणे // माउलय-अणुमयं गिहिऊण ठाणंतरम्मि संचलिओ / गुण-गुरुणा सह गुरुणा संपत्तो खंभतिस्थम्मि // सब पवबो दिक्खं कुणमाणो सयल-संघ-परिभोसं / सो सोम-मुहो सोमोसोमचंदो चि कयनामो // . 155

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