Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith
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________________ " सोमामाचार्वत [अत्र ग्रन्थकता पारदार्यविषया प्रद्योतकशा कविता।] रखा पुतं-मयव ! मूलाको विय मए परिस्थीयो / दूरं भयंकरीओ भुयंगमीओ व पत्तायो॥ पररमणि पसत्त-मणो पाएण जणोन को वि मह रज्जे / गुरुणा भणियं-धनो सि जो परिस्थी-नियोति। कमलाण सरं रयणाण रोहणं तारयाण जहा गयणं / परदार-निवित्ति-वयं वनंति गुणाण तह ठाणं // यह गुरुणा वागरियं-वेसा-वसणं नरिंद ! मुत्तबं / दविणस्स विणासयरं जं कमल-वणस्स तुहिणं // नीररासि महणं व कालकूडं जणेइ खयरोगं / कवलेइ कुलं सयलं जं राहु-मुहं व ससि-बिंबं॥ धूमो छ चित्त-कम्मं जं गुण-गणमुबलं पि मलिणेइ / जं दोसाण निवासो वम्मिय-विवरं व भुयगाणं // बेसा-वसणासत्तो तिवग्ग-मूलं विणासिउं अत्थं / पच्छा पच्छायावेण लहइ सोयं असोओ॥ [अत्र वेश्याव्यसनविपाकप्रतिपादिका अशोककथा कथिता।] रन्ना भणियं-भयवं! वेसासु मणं अहं पि न करिस्सं / गुरुणा भणियं-भवउ उत्तम-पुरिसस्स जुत्तमिणं // 13. सूरिकृतो मद्यपाननिषेधोपदेशः, राज्ञस्तस्यापि परिहरणम् / ___ संपयं मज-वसणदोसे सुणसुनञ्चइ गायइ पहसइ पणमइ परिभमइ मुयइ वत्थं पि / तूसइ रूसइ निक्कारणं पि मइरा-मउम्मत्तो // जणाणं पि पिययमं पिययमं पि जणणिं जणो विभावंतो / मइरा-मएण मत्तो गम्मागम्मं न याणेइ // न हु अप्प-पर-विसेसं वियाणए मज-पाण-मूढ-मणो / बहु मन्नइ अप्पाणं पहुं पि निन्भच्छए जेण // वयणे पसारिए साणया विवरब्भमेण मुत्तंति / पह-पडिय-सवस्स व दुरप्पणो मज-मत्तस्स // धम्मत्थ-काम-विग्धं विहणिय-मइ-कित्ति-कंति-मज्जायं / मजं सवेसि पि हु भवणं दोसाण किं बहुणा // जं जायवा स-सयणा स-परियणा स-विहवा स-नयरा य / निच्चं सुरा-पसत्ता खयं गया तं जए पयर्ड। [अत्र मद्यपानदोषदर्शिका यादवनाशकथा वर्णिता।] . एवं नरिंद ! जाओ मजाओ जायवाण सव-क्खओ / ता रन्ना नियरज्जे मज्जपवित्ती वि पडिसिद्धा // 115 514. सूरेश्चौर्यव्यसनपरिहारोपदेशः, राज्ञस्तनिवारणम् / मृतधनापहरणस्यापि निवेधः। इण्डिं नरिंद ! निसुणसु कहिज्जमाणं मए समासेणं / वसणाण सिरोरयणं व सत्तमं चोरियावसणं // पर-दव हरण-पाव-दुमस्स धण-हरण-मारणाईणि / वसणाई कुसुम-नियरो नारय-दुक्खाइं फल-रिद्धी // जग्गंतो सुत्तो वा न लहइ सुक्खं दिणे निसाए वा / संका-छुरियाए छिज्जमाण-हियओ धुवं चोरो॥ चोरियाए दक्खं उबंधण-सलरोवण-प्पमहं / एत्थ विलहेइ जीवो तं सब-जणस्स पञ्चक्खं॥ दोहग्गमंगछेयं पराभवं विभव-भंसमन्नं पि / जं पुण परत्थ पावइ पाणी तं केत्तियं कहिमो // हरिऊण परस्स धणं कयाणुतावो समप्पए जइ वि / तह वि हु लहेइ दुक्खं जीवो वरुणो व परलोए / [चौर्यकर्मफलविषयं वरुणकथानकमत्र कथितम् / ] .. रचा मणियं-भयवं ! पुर्व पि मए अदिन्नमनधणं / न कयावि हु गहियव्वं निय-रज्जे इप कओ नियमो / जो उण कयाइ कस्स वि कयावराहस्स कीरए दंडो / सो लोय-पालण-निमित्तमध्ववत्या हवइ इहरा // जं च स्यंतीण धणं महंत-पीडा-निबंधणत्तेण / बहु-पाव-बंध-हेउं अओ परं तं पि वजिस्सं // . गुरुणोक्तम्न यन्मुक्तं पूर्व रघु-नघुष-नाभाग-भरतप्रभृत्यु:नाथैः कृतयुगकृतोत्पत्तिभिरपि / विमुञ्चन् सन्तोषात्तदपि रुदतीवित्तमधुना कुमारक्षमापाल ! त्वमसि महतां मस्तकमणिः॥ 5 इस सोमप्पह-कहिए कुमारनिष-हेमचंवपडिबद्धे / जिण-धम्म-प्पडिबोहे समविवो पागलायो। ___ णाचार्यश्रीखोमप्रमाविरपिये कमारमालप्रतिबोधे प्रथमः मा

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