Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

View full book text
Previous | Next

Page 200
________________ छमारपासप्रतिबोध-संक्षेप RA जो उण न हणइ जीवे जो तेसिं जीवियं सुहं विभवं / न हणइ तत्तो तस्स वि तं न हणइ को वि पर-लोए // ता मरेण व नूणं कयाणुकंपा मए वि पुख-भवे / जं लंपिऊण वसणाई रज-लच्छी इमा लद्धा॥ वा संपर जीव-दया जाव-जीवं मए विहेयथा / मसं न मक्खियवं परिहरियचा य पारद्धी // जो देवयाण पुरओ कीरह आरुग्ग-संति-कम्म-कए / जो पसु-महिसाण विणासो निवारियबो मए सो वि / / जीव-वह-दुक्कएण वि जइ आरुग्गाइ जायए कह वि / तत्तो दवानलेणं दुमाण कुसुमोग्गमो होज्जा // जो जनेसु पसु-वहो विहिओ सग्गाइ-साहण-निमित्तं / दिय-पुंगव ! सेयं चिय विवेइणोतं न काहिति // 195 बालो वि मुणइ एवं जं जीव-वहेण लन्भइ न सग्गो। किं पन्नग-मुह-कुहराओ होइ पीऊस-रस-वुढी॥ तो गुरुणा वागरियं नरिंद ! तुह धम्म-बंधुरा बुद्धी / सबुत्तमो विवेगो अणुत्तरं तत्त-दंसित्तं // . जं जीव-दया-रम्मे धम्मे कलाण-जणण-कय-कम्मे / सग्गापवग्ग-पुर-मग्ग-दंसणे तुह मणं लीणं // 10. कुमारपालस्य सर्वग्रामनगरेषु राजादेशप्रेषणेन जीवदयाप्रवर्तना। तो रक्षा रायाएस-पेसणेण सव-गाम नगरेसु अमारिघोसणा-पडह-वायण-पुवं पवत्तिया जीव-दया। 10. गुरुणा भणिओ राया-महाराय ! दुप्परिचया पाएण मंस-गिद्धी / धन्नो तुमं भायणं सकल-कलाणाणं जेण कया __ मंस-निवित्ती। ता सम्म पालेजसु मंस-निवित्तिं नरिंदं ! जा-जीवं / सम्मं अपालयंतो कुंदो व दुहं लहइ जीवो // . [अत्र कुन्दकथानकवर्णनं परिकथितम् / ] जो पुण नियममखंडं पालिज अवज-वजणुजुत्तो / सो पुरिसो पर-लोए सोक्खमखंडं लहइ नूणं // / जो य न करेज नियमं निद्धम्मो जो कयं च भंजिन्जा / सो मंस-भोग-गिद्धो नरयाइ-कयत्थणं सहइ // __ता महाराय ! जुत्तं तुमए कयं जं सत्तण्हं महावसणाणं दुवे पारद्धी मंसं च परिचत्ताणि / सेसाणि वि सबाणत्थ-निबंधणाणि परिहरियवाणि / तत्थ११. हेमचन्द्रसूरिकृतो तपरिहारविषयोपदेशः / तदनुसारेण कुमारपालस्य यूतपरित्यागः, राज्येऽपि तनिषेधः। जं कुल-कलंक-मूलं गुरु लज्जा-सच्च-सोय-पडिकूलं / धम्मत्थ-काम-चुक्कं दाण-दया-भोग-परिमुक्कं // पिय-माय-माय सुय-भज मोसणं सोसणं सुह-जलाणं / सुगइ-पडिवक्ख-भूयं तं जूयं राय ! परिहरसु / / जय-पसत्तो सत्तो समत्त-वित्तस्स कुणइ विद्धंसं / हारिय-असेस-रजो इह दिहतो नलो राया। [भत्र प्रन्थकारेण पूतविषये नलचरितं प्रथितम् / ] एयं सोऊण भणियं रना-भयवं ! न मए अक्खाइ-जूएण कीलामेत्तं पि कायवं / गुरुणा वुत्त-महाराय ! जुत्तं तुम्हारिसाणं विणिजियअक्खाणं अक्ख-जूय-वजणं / मंतीहिं विन्नत्तो राया-देव ! देवेण ताव 'सयं परिवत्तं एवं, अओ सम्बत्थ रजे निवारिजउ ति / रत्ना वुत्तं-एवं करेह / 'आएसो पमाणं' ति भणंतेहिं तेहिं तहेव कवं / 12. सूरिकृतः परस्त्रीगमनत्यागोपदेशः / राज्ञस्तत्स्वीकारः। ___ गुरुणा भणियं-सबाणत्यनिषंधणं परि-हरसु पर-रमणि-सेवणं / जओकुल कलंकिउ मलिउ माहप्पु, मलिणीकय सयण-मुह, दिन्नु हत्थु नियगुण-कडप्पह, जगु शंपिओ अवजसिण, वसण-विहिय सन्निहिय अप्पह / रह वारिउ भडु तिणि दक्किउ सुगइ-दुवारु / उभय-भवुन्भड-दुक्ख-करु कामिउ जिण परदार // सहस-नमिर नरेसर-चूड़ा-बिजमाण-चलणो वि / पर महिलमहिलसंतो पज्जोओ बंधणं पत्तो॥ .

Loading...

Page Navigation
1 ... 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242