Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 196
________________ कुमारपालप्रतिबोध-संक्षेप एसो जुग्गो रजस्स रअलक्खण-सणाह-सवंगो / ता झत्ति ठविजउ निग्गुणेहिं पअत्तमन्नेहिं // एवं परुपरं मंतिऊण तह गिण्हिऊण संवायं / सामुद्दिय-मोहुत्तिय-साउणिय-नेमित्तिय-नराणं // , रजमि परिडविओ कुमारपालो पहाण-पुरिसेहिं / तत्तो भुवणमसेसं परिओस-परं व संजायं // .. तुट्ट-हार-दंतुरिय-घरंगण नच्चिय-चार-विलास-पणंगण / ... . निब्भर-सह-भरिय-भुवणंतर वज्जिय-मंगल-तूर-निरंतर // . साहिय-दिसा-चउक्को चउ-बिहोवाय-धरिय-चउ-वन्नो / चउ-वग्ग सेवण-परो कुमर-नरिंदो कुणइ रजं // 5. कमारपालस्य धर्मखरूपजिज्ञासा। अह अन्नया वियड्डे बहुणो बहु-धम्म-सत्थ-नाणड्डे / विप्पपहाणे हक्कारिऊण रन्ना मणियमेवं // करि-तुरय-रह-समिद्धं नरिंद-सिरि-कुसुम-लीढ-पयवीढं / लंधिय-वसण-सहस्सो संपत्तो जं अहं रज्जं // तं पुव-भवे धम्मो सुहेक्क हेऊ कओ मए को वि / कजस्स दंसणाओ जाणंति हि कारणं निउणा // ता धम्मस्स सरूवं कहेहि परिभाविऊण सत्थत्यं / जेण तमायरिऊणं करेमि मणुयत्तणं सहलं // मणुयत्तणे वि लद्धे कुणंति धम्मं न जे विमूढ-मणा / ते रोहणं पि पत्ता महग्ध-रयणं न गिण्हंति // तो वुड्ड-बंभणेहिं निवस्स वेयाइ-सत्थ-पन्नत्तो / पसु-वह-पहाण-जागाइ-लक्खणो अक्खिओ धम्मो // .. तं सोऊण निवणं फुरिय-विवेएण चिंतियं चित्ते / अहह दिय-पुंगवेहिं न सोहणो साहिओ धम्मो // . . पंचिंदिय-जीव-वहो निक्करुण-मणेहिं कीरए जत्थ / जइ सो वि होज धम्मो नत्थि अहम्मो तओ को वि॥ ता धम्मस्स सरूवं जहहियं किं इमे न जाणंति ? / किं वा जाणंता वि हु मं विप्पा विप्पयारंति // इय चिंताए निदं अलहंतो निसि-भरम्मि नरनाहो / नमिऊण अमचेणं बाहडदेवेण विन्नत्तो॥ 6. वाग्टदेवेन कुमारपालस्य हेमचन्द्रसूरिपरिचयोत्पादनम् / तत्र प्रथम हेमचन्द्रगुरुपरम्परावर्णनम् / धम्माधम्म-सरूवं नरिंद ! जइ जाणिउं तुमं महसि / खणमेक्कमेगचित्तो निसुणसु जं कि पि जंपेमि // .. आसि भमरहिओ पुन्नतल्ल-गुरु गच्छ दुम-कुसुम गुच्छो / समय-मयरंद-सारो सिरिदत्तगुरू सुरहि-सालो सो विहिणा विहरंतो गामागर-नगर-भूसियं वसुहं / वागड-विसय-वयंसे रयणपुरे पुर-वरे पत्तो॥.. / तत्थ निवो जसभद्दो भद्द-गयंदो व दाण-लद्ध-जसो / वेरि-करि-दलण-सूरो उन्नय-वंसो विसाल करो // तम्मि नरिंद-मंदिर-अदूर-देसम्मि गिहिउँ वसहिं / चंदो व तारय-जुओ मुणि-परियरिओ ठिओ एसो॥ तस्स सुहा-रस-सारणि-सहोयरं धम्म-देसणं सोउं / संवेग-वासिय मणा के वि पवजंति पवनं // अन्ने गित्य-धम्मोचियाई वारस-वयाइं गिण्हंति / मोक्ख-तरु-बीय-भूयं सम्मत्तं आयरंति परे // अह अन्नया निसाए सज्झाय-झुर्णि मुणीण सोऊण / जसमद्द-निवो संवेग-परिगओ चिंतए चित्ते / / धन्ना एए मुणिणो काउं जे सव्व-संग-परिहारं / पर-लोय-मग्गमेकं मुक्क-भवासा पयंपंति // ता एयाण मुणीणं पय-पउम-नमंसणेण अप्पाणं / परिगलिय-पाव-पंकं पहाय-समए करिस्सामि // एवं धम्म-मणोरह कलिय-मणो पत्थिवो लहइ निदं / मंगल-तूर-रवेणं पडिबुद्धो पच्छिमे जामे // कय-सयल-गोस-किच्चो समत्त-सामंत मंति-परियरिओ / करि-तुरय-रह-समेओ पत्तो सिरिदत्त-गुरु-पासे॥ मूमि-निहिउत्तमंगो भत्ति-समग्यो गुरुं पणमिऊण / पुरओ निवो निविडो कयंजली भणिउमाढत्तो // . भयवं ! धन्ना तुम्भे संसारासारयं मणे परिउं / जे चत्त-सब-संगा पर-लोयाराहणं कुणह // . सम्हारिसा अहन्ना परलोय-परंमुहा महारंभा / अनियत्त-विसय-तण्हा जे इह-भव-मेत्त-पडिबद्धा // मह जंपिउं पवत्तो सिरिदत्तगुरू नहंगणं सयलं / तव-सिरि-मुत्ता-पंतीहिं दंत-कंतीहिं. धवलंतो // मुह-ससि-पवेस-सुविणोवमाइ-दुलहं नरत्तणं लहिउं / खणमेनं प्रि पमाओ बुहेण.धम्मे न कायद्यो॥

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