Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith
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________________ कुमारपालप्रतिषोध-संक्षेप शतार्थिकवि-सोमप्रभाचार्यकृत कुमार पालप्रति बोध नामकबृहत्प्राकृतग्रन्थस्य ऐतिह्यसारात्मकः संक्षेपः / प्रथमः प्रकाशः। 1. प्रन्थकारकृता प्रस्तावना। चउसु दिसासु पसरियं मोह-बलं निबिउं पयहोछ / पयडिय-धम्म-चउको चउ-देहो जयइ जिण-नाहो / तं नमह रिसह-नाहं नाण-निहाणस्स जस्स असेसु / अलि-कसिणो केस-मरो रेहइ रुक्खे भुयंगो।। तं सरह संतिनाहं पवन-चरणं पि जं चरण-लग्गा / तियस-कय-कणय-पंकय-मिसेण सेवंति नव निहिणो॥ कजल-समाण-वन्नं सिवंग-भूयं निसिद्ध-मय-मारं / परिहरिय-रायमइयं दुहा नमसामि नेमिजिणं // मन्ह पसीयउ पासो पासे जस्सोरगिंद-फण-मणिणो / दिप्पंति सत्त-दीव सत्त तत्ताई पायडिउं // सो जयइ महावीरो सरीर-दुग्गाओ भाव-रिउ-वग्गो / चिरमन्न-पाण-रोहं काउं निवासिओ जेण // : वित्यारिय-परमत्यं अणग्य-रयणासयं सुवन्न-पयं / दोगच्च-दलण-निउणं नमह निहाणं व जिण-ववर्ण / जेसि तुहि लहिं व लहिउ मंदो वि अखलिय-पएहिं / विसमे वि कब-मग्गे संचरइ जयंतु ते गुरुणो // कइणो जयंतु ते जलहिणो व उवजीविऊण जाण पयं / अन्ने वि षणा मुवणे कुणंति धन्नाण उक्करिसं। जलहि-जल-गलियस्यणं व दुलहं माणुसत्तणं लहिउं / जिणधम्ममि पयत्तो कायचो बुद्धिमंतेण // ' सग्गो ताण घरंगणं सहयरा सच्चा सुहा संपया, सोहग्गाइ-गुणावली विरयए सवंगमालिंगणं / .. संसारो न दुरुत्तरो सिव-सुहं पत्तं करंभोरुहे, जे सम्म जिणधम्म-कम्म-करणे वटुंति उद्धारया // सप्पुरिस-चरिताणं सरणेण पयंपणेण सवणेण / अणुमोयणेण य फुडं जिणधम्मो लहइ उक्करिसं // पुखं जिणा गणहरा चउदस-दस-पुषिणो चरिम-तणुणो / चारित्त-धरा बहवो जाया अन्ने वि सप्पुरिसा / / तह भरहेसर-सेणिय-संपइनिवपभिइणो समुप्पना ।पवयण-पमावणा-गुण-निहिणो गिहिणो वि सप्पुरिसा॥ तेर्सि नाम-ग्गहणं पि जणइ जंतूण पुन्न-पन्मारं / सग्गापवग्ग-सुह-संपयाउ संपाडइ कमेण // संपइ पुण सप्पुरिसो एक्को सिरि-हेमचंद-मुणिणाहो / फुरियं दूसम-समए वि जस्स लोउत्तरं चरियं // दुइओ य दलिय-रिउ-चक्क-विक्कमो कुमरवाल-भूपालो / जेण ददं पडिवन्नो जिण-धम्मो दूसमाए वि॥ केवल नाण-पलोइअ-तइलोकाणं जिणाण वयणेहिं / पुष-निवा पडिबुद्धा जिणधम्मे जं न तं चुकं // चुअमिणं जं राया कुमारवालो परूढ-मिच्छत्तो / छउमस्येण वि पहुणा जिणधम्म-परायणो विहियो॥ तुलिय-तवणिज कंती सयवत्त-सवत्त-नयण रमणिना / पलविय-लोय-लोयण-हरिस-प्पसरा सरीर-सिरी // आपालत्तणओ वि हु चारित्तं जणिय-जण-चमकारं / बावीस-परीसह-सहण-दुद्धरं तिब-तव-पवरं // गुणिस-विसमत्थ-सत्या निम्मिय-वायरण-पमुह-गंथनगणारबाह-पराजय-जाय सुकित्ति-मई जय-पसिद्धा॥ धम्म-पडिवत्ति जणणं अतुच्छ-विच्छत्त-मुच्छिाणं पि / महु-खीर-पमुह-महुरत्त-निम्मियं धम्म-वागरणं / इचाइ-गुणोहं हेमसूरिणो पेच्छिऊण छेय-जयो / सहइ अदिहे वि हु तित्थंकर-गणहर-प्पमुहे // 2 // जिणधम्मे पडिवति कुमरनारिवस्स लोइई लोगो / पत्तिया व चिरंतण-भूमिवईणं पि अविअपं // सिक-पह-कहगे वि सयं बीरजिणे सेमिरण नरवहणा / जीवरयं कारविडं न सकिओ कालसोयरिको। 5. पा. .15

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