Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३ ) लेकर अपने गांव से चित्तोड़ तर्फ आ रहा था इतनेमें दैवयोग पैर फिसल जानेसे वह गिर पड़ा, बी जमीनमें मिलगया । " दैवं दुर्बलघातकं वह विचारा क्षते क्षारवत् उस नयी व्याधिसे और भी तकलीफ में आ पड़ा । दयालु लोगोंको उसकी उस हालत पर दया आई, उन्होंने उसे पांच रुपये देकर फिर व्यापारमें जोड़ा । वह बिचारा उन पाँच रुपयोंका घी खरीदकर सिर पर कुप्पा उठाये चड़गाम जा रहा था, कि - फिर पैर फिसल जानेसे उसका घी नष्ट होगया । उस वक्त उसे यद्यपि असह्य दुःख होना चाहिये था तथापि उसने मान लिया कि इसमें दुःख और अफसोस जाहिर करनेसे क्या होगा ? किसी मनुष्यने तो मुझे इस आपत्तिके गर्त्तमें नहीं फेंका-किन्तु - For Private And Personal Use Only

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