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(९) दूसरा परिच्छेद।
आशातनाका फल। गुरुमहाराजने उसके अंतःकरणको मैत्रीप्रमोद-कारुण्य-माध्यस्थ इन चार भावनाओंसे वासित किया। पांच समिति, तीन गुप्ति यह आठ प्रवचन मातारूप चारित्र पात्र बना या और-ग्रहण आसेवन शिक्षामें कुशल बना दिया। दीक्षा लेकर वह भाग्यशाली निरतिचार चारित्र पालने लगा। गुरु महाराजकी शिक्षाओंको वह अपने जीवितसे भी अधिक प्रिय समझकर उनका पालन करने लगा। दशविध यति धर्मको तो उसने अपना सर्वस्व मान लिया था । मासखमण आदि अनेक तपस्याओंसे वह अपनी आत्माको निर्मल करने लगा। एक वक्त उस पुण्यधन
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