Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दे, कि उनसे तेरे प्रेमके सदा आंसु ही बहा करें और जिन्हें देखकर निर्दय शत्रु भी वशीभूत हो जावें। क्या मुझे भूल गये! हे भक्तबत्सल ! मुझे ऐसी स्मरणशक्ति प्रदान कर दे जिससे मैं तुझे पल भर भी न भूलूं और अपने नित्यके प्रत्येक कार्यको विना तेरी साक्षीके न करूं । मुझे वह अहंकार चाहिये कि 'मैं तेरा हूं और तू मेरा है।' अय मेरे प्रियतम ! सबसे बड़ा वर, जिसकी मैं तुझसे याचना करना चाहता हूँ, वह यह है कि तू मुझे अपना निष्काम तथा बिशुद्ध प्रेम दे दे और वह प्रेम तेरे प्रेमही के लिये हो ।” ( तरंगिणी ) ___ अब बोहेका मन सांसारिक प्रपंचोंसे विरक्त हुआ, उसे अव विषमय विषयोंसे, केश, धनसंपदासे बंधनभूत बंधुजनोंसे नफरत आने लगी । कोई संसारतारक-परमार्थ बंधु-योगीराज नजर आय तो उनके चरणोंमें निवास कर अपने शेष तुच्छ जीवन For Private And Personal Use Only

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