Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४ ) निकल रहा है, वेदनाकान्त पशुओंकी तरह जमीन पर लेट रहे हैं, “कोई दयालु हमें बचा ओं कोई दनि बन्धु हमारी रक्षा करो। हम मरते हैं, हमें प्राणदान दो। हम अशरण कोई समर्थ अपने सामर्थ्यका सदुपयोग करो और हम पाशबद्धोंको मुक्त करो। ओ प्रभु ! ओ परमेश्वर ! हे शंभु ! हे मुरारि ! हे ज्वालामुखि ! हे माता भवानि ! हे कालि ! हे चंडिका ! हे गजानन ! हे गणेश ! आप हमारा रक्षण करो पालन करो ।" इस तरह विविध विलाप करते हुए उनको देखकर स्वजनोंको अतिशय दया आई परंतु कर क्या सक्ते थे ? शुभाशुभानि कर्माणि, स्वयं कुर्वन्ति देहिनः । स्वयमेवोपकुर्वन्ति सुखानि च दुःखानि च ॥" उनको निश्चय हुआ कि इन दुर्विदग्धोंने इस महात्मा तपस्वीको सताया होगा और तपस्वीने अपने तप तेजसे इनको बांधा है । वे सब For Private And Personal Use Only

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