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( २५ )
तो आहार लेना " वरना कुछ नहीं लेना । यह अभिग्रह इस तरहसे पूर्ण हुआ कि - हजार हाथियोंका मालिक सिन्धुल राजा जो कि उस समय धारानगरीका मालिक था उससे नाराज होकर 'कृष्ण' किसी हलवाईकी दुकान पर बैठा हुआ था तत्काल स्नान किया हुआ होनेसे केश भी उसके खुले थे, उसने ऋषिको बुलाया और भाले के अग्र भाग में परोकर मंडे दिये । ऋषि राजने जब गिनती की तो पूरे २१ निकले । बस आजका दिन उसका भी शुभ था जो मुनिराजके पारणेमें उसकी दी हुई वस्तु काम आ गई |
घोर तपस्वी मुनिराज के इस प्रथम अभिग्रहमें तीन महीने और आठ दिनोंकी तपस्या हुई । मुनिके अभिग्रहकी बात सुनकर कृष्णको बड़ा आश्चर्य और आदर हुआ । मुनिश्रीजीके
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