Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३३) ऋषिराज श्री क्षमाऋषिजी ज्यों ज्यों अधिकाधिक समयके पर्यायवाले होते जाते थे त्यों त्यों उनकी आत्माकी दशा भी उच्च, उच्चतर, और उच्चतम बनती जाती थी। दूसरे अभिग्रहका स्वस्थ चित्तसे पारण करके उन्होंने झट तीसरा नियम फिर धारण कर लिया। तीसरे प्रणमें यह प्रतिज्ञा थी कि" जातिकी ब्राह्मणी. साससे लड़ करके, दो ग्रामोंके अंतरमें रही हुई पूर्णपोली (घृत गुड मिश्र रोटी) दे तो हमारा पारण होवे अन्यथा-तपस्या" ॥ इस अभिग्रहके पूर्ण होने में ऐसा बनाव बना कि साससे दुःखिनी हुई कोई एक विप्रवधू घर छोड़ कर जंगलमें चली गई, वहां उसको दुःख दग्ध देखकर एक बूढे ब्राह्मणको (जो कि जंगलमें लकड़ियां लेने गया हुआ था) उस निराधार स्त्री पर क्या आई, उसने उससे वृत्तान्त पूछा। For Private And Personal Use Only

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