Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४४) इन सर्व कार्यों में फतेह मंद होते हुए क्षमाऋषि'जीने विचार किया कि-यह सब प्रभाव गुरु महाराजका है। "सेव्यः सदा श्री गुरुकल्पपादपः" “मुझे अब उचित है कि-उभयलोकके धर्म सार्थवाह गुरुमहाराजकी सेवा शुश्रूषा करके अपने स्वल्प जीवनको सफल बना लूं । यतोऽ वादि पूर्वर्षिभिः । दिवो दिवाकरो हन्ति, रात्रौ जैवातकस्तमः। हार्द तयोरसाध्यं तु, गुरुरेव न चापरः॥१॥ दिनादौ श्रीगुरोनाम मन्त्रमष्टोत्तरं शतम् । जप्त्वान्यमन्त्रस्मरणं, कर्तव्य सिद्धिमिच्छता २ क्रुद्धो गुरुर्वदति यानि वांसि शिष्ये । मध्यान्हसूर्य इव तानि दहन्ति देहम् ।। "तान्येव कालपरिणामसुखावहानि । पश्चाद्भवन्ति कमलाकरशीतलानि ॥३॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48