Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४२) उनकी प्रशंसा की इतना ही नहीं बल्कि-एक जैन मंदिर बनवा कर विधिपूर्वक प्रभुप्रतिमा की प्रतिष्ठा करा उसी मंदिरमें मुनिराजकी चरण पादुका स्थापन कराकर भक्तिभावसे पूजने लगा !! । क्यों नहीं ? सक्ख खु दीसइ तवोविसेसो, न दीसइ जाइविसेसु कोई । सोवागपुत्तं हरिएससाई, __ जस्सरिसा इड्डिमहाणुभावा ।।३७॥ उत्तराध्ययन सूत्र, अ० १२ वा, आधा उस राज्य जो सुनिराजको देना स्वीकारा था, सत्य संघावाले सिंधुलराजने सात क्षेत्रोंका पोषण कर थोड़े ही समय में पृथ्वीको जैनधर्मसे पूर्ण परिचित कर दिया। एक दिन मुनि श्री रास्ते में जा रहे थे, सामनेसे आते हुए एक मुरदेको देख उन्होंने पार्श्ववर्ति मनुष्योंको पूछा यह किसका मुरदा है ? कौन मरगया ? लोगोंने नम्रभावसे कहा For Private And Personal Use Only

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