Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१) आकर बोला ठहरो इस हाथीको छोड़कर और हाथियोंको बेशक यह पानी छांटो। इस हाथीके लिये हम अपना उपाय करेंगे। तापसका आन्तरिक आशय यह था कि जिन जिन हाथियोंको मैं न बचाऊंगा वे सब ही मर जायेंगे बस यह एक हाथी बचेगा इससे मेरी प्रतिष्ठा बढेगी। परंतु हुआ यह कि कोड़ों उपायोंके करने पर भी वह हाथी मर गया जिसे तापसने जिन्दा रखना चाहाथा। शेष बच गये ! तापसके ईर्ष्यालु स्वभावसे उसके किये हुए सब टोटके खाली ही चले गये । निग्रंथ प्रवचन जैन शासनकी महिमा बढ़ी। राजाने ऋषिजीके पास जाकर उन्हें आधा राज्य देना चाहा परन्तु ऋषिजीने एकही उत्तर देकर राजाको संतुष्ट किया कि राजन् ! मेरे संयमराज्यके सामने सार्वभौम चक्रवर्तिका राज्यभी तुच्छ है तो फिर तुम्हारे राज्य पर मुझे आसक्ति कैसे हो? मुनिराजकी निर्लोभताको देखकर राजाने अंतरंग श्रद्धासे For Private And Personal Use Only

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