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( ३९) चौथा परिच्छेद ।
मुनिकी उदारता। इस तरह अनेक अभिग्रह मुनिराजने ऐसे २ कठोर स्वीकारे कि जो पार पहुंचने बड़े कठिन थे, जैसे एक अभिग्रह ऐसा लिया कि "भाद्रवमास हो, बन्दर सिंगलसे बाँधा हुआ हो वह भी फलानी जगह रह कर आमका रस दे तो लेना-" परन्तु कहा है कियदाराध्यं यत्साध्यं यद्धयेयं यच्च दुर्लभम् । तत्सर्व तपसा साध्यं, तपसा किं न सिद्धयति?। __ पारणेके बाद एक दफा-वह देव कि जो पूर्व जन्ममें कृष्ण राज्यांधिाकरी था और ऋषिजीके पास दीक्षा लेकर देवलोक में उत्पन्न हुआ था. क्षमाऋषिजीके पास आकर बोला "सिंधुल राजाके एक हजार हाथी बीमार
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