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(३७) इस नमूनेके निकलेंगे । सफल जन्म है उन वैराग्यवंत महापुरुषोंका जिन्होंने अपने निजके शरीरके वास्ते भी
" इदं शरीरं क्षणभंगुरं खलु।" इसी रटनामें अनित्य-अस्थिर और शाश्वतमानकर तपोवृद्धि में ही सतत प्रयत्न किया है। __ आत्मगवेषी मुनिपुंगव श्रीक्षमाऋषिजीने तीसरे अभिग्रहको समाप्त कर फौरन ही ऊपर से चौथा घोरअभिग्रह धारण किया " श्याम तुंदवाला श्वेतनासिकावाला कटिहुई पूंछवाला सांढ अपने सींगोंसे उठाकर गुड देवे तो पारण करना” अन्यथा तपावृद्धि। मुनिराज अपनी प्रवचनमातृकाओंका आराधन करते हुए धारानगरी में विचरते हैं।
एक समय एक सांट मदोन्मत्त होकर गली गली बाजार बाजार घूम रहा था। उसने सामनेसे आते हुए ऋषिको देखा।
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