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(३५)
सबकी सब बातें मौजूद पाई। प्रतिज्ञाकी पूर्ति हुई । दान देनेवाली विप्रपत्नीके शिरपर कुसुम वृष्टि करते हुए देवताओंने उसकी मुक्तकंठसे प्रशंसा की। सास श्वशुर वगैरह कुल परिवारके लोगों में उसका बड़ा मान सन्मान बढ़ा। और घरके तमामकार्य उसके अधीन किये गये। " तपोऽनुभावो न किमत्र बुध्यते ?
विशुद्धबोधैरियताक्षगोचरैः। यदन्यनिःशेषगुणैरपाकृतस्तपोऽधिकश्चेजगतापि पूज्यते ॥१॥
(अमितगतिः) जिन शासनके प्रवर्तक देवाधिदेव श्रीमन्महावीरस्वामीने जो कुछ आप खुदकिया है वही दूसरे भव्यात्माओंको करना फरमाया है. इसीका नाम तो न्याय है, संसा
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