Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४) स्त्रीने उस ब्राह्मणको अपना पिता तुल्य समझ कर अपना कुल समाचार कह सुनाया। ब्राह्मणको निश्चय हुआ कि वाई तो निर्दोष है परन्तु इसकी सास बड़ी प्रचंड स्वभाववाली है । उसने अपने पास जो पूरणपोलिये खानेके लिये रक्खी हुई थी उनमेंसे कुछ उस ब्राह्मणीको दे दी। उस वक्त उस निदोष दुःखिनी औरतका अंतरात्मा केशपूर्ण था, उसने सोचा ऐसी दयाजनक स्थितिमें उत्तम भोजन मिला है यदि कोई अतिथि आजावे तो उसको देकर खाऊं, ऐसी स्थितिमें दिया हुआ दान अनंत गुण फलको पैदा करता है। __ऐसी विशुद्धभावनाके साथ-पर्वतके ऊपरसे पारणेके लिये वस्तीमें जाते हुए उसने ऋषिजीको देखा और उस अन्नकी प्रार्थना की । क्षमाऋषिजीके अभिग्रहमें जो जो बातें शामिल थीं। उन्होंने उनकी तलायशकी तो For Private And Personal Use Only

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