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(३२) नहीं रहेगा, इसलिये मनुष्यमात्रके लिये सूरिजी महाराजका यह उपदेश है कि-पापपुण्यका कुछ भी विचार न करके, जिस शरीरका तूं पोषण करता है, वह तुझ पर क्या उपकार करेगा? इस लिये उस शरी. रके लिये तू हिंसा आदि अकृत्य करता हुआ आगामी कालका विचार कर । यह शरीर रूप 'धूर्त ' तुझे और तेरे भाई बंधुओंको यावत् निखिल संसारको ठग रहा है, धोखा दे रहा है, आंखोंमें धूल डाल कर-सर्वस्व खोसे ले जा रहा है। वह शालीभद्रका शरीर कि जो देवताओंके दिये पुष्पोंकी शय्यामें सुखसे आराम करता था वही शरीर उनकी संयम अवस्थामें वन जैसा दृढ और सहनशील हो गया था कि जिससे अलौकिक सुखशायी शालीभद्र कुमारने महीने महीने की घोरतपस्या कर आत्मकल्याण किया था,
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