Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१ ) वाक्य उसे याद नहीं आता कि जो प्रतिक्षण स्मरण करनेके लायक है लिखा है कि " पुष्णासि यं देहमवान्यचिन्तयं" स्तवोपकारं किमयं विधास्यति ? | ॥ " कर्माणि कुर्वन्निति चिन्तयात्मन् !, " जगत्ययं वञ्चयते हि धूर्तरराट् ॥ १ ॥ ( मुनिसुंदर सूरि : ) शरीरको पोषण करनेके लिये अकल्प्या और अभक्ष्यवस्तुयें देकर भी इस दुर्जनका सत्कार करना पड़ता है । इसके लिये १८ पापस्थानक सेवन द्वारा धन इकट्ठा करना पड़ता है । साबुन घिसघिस कर - अत्तर लगाकर पंखे हिलाकर दवाइयां पिलाकर सुंदरमें सुंदर पोशाकें पहनाकर दुखके समय धर्मको भूलकर रातदिन इसकी सेवा बरदास्त करते हुए भी यह खल, यह कृतघ्न अपनी प्रकृतिका गुण जरूर दिखाये विना For Private And Personal Use Only

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