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( २९ )
पड़ी । हाथी तत्काल शान्त हो गया । बाजारमें किसी हलवाई की दुकान थी उस दुकान पर रक्खे हुए लड्डुओंके थालमेंसे पांच लड्डु हाथीने ऋषिजीको दिये, ऋषिने आनंद पूर्वक ले लिये। लोगों में अपार हर्ष फैला, हाथी-मुनिराजकी दृष्टिरूप सुधा वृष्टिसे शान्त हो गया । आरक्षकोंने पकड़ कर ठिकाने बांध दिया। हाथी जैसा अज्ञान पशु जिनका आदर करे वह यशस्वी देव, दानव और मनुष्योंके पूजनीक क्यों न हों ? ऋषिराजके इस अपूर्व अतिशय से अनेक लोगोंको चारित्र धर्म- देश - विरति - और सुलभ बोधिपनेकी प्राप्ति हुई । मुनिके मुखपर अधिकाधिक तेज बढ़ता देख लोगोंने एक जबानसे प्रशंसा करते हुए कहा - " श्रमं विना नास्ति महाफलोदयः " श्रमं विना नास्ति सुखं कदाचन ।
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