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(२८)
यह सुनकर कृष्णने गुरुमहाराजके पास दीक्षा स्वीकार करली, अब तपस्वी गुरुके चरणोंमें रहकर कृष्णर्षिभी अनेक प्रकारकी तपस्या करने लगा। छः मासका विशुद्ध चारित्र पालकर कृष्णर्षिजी स्वर्ग सुखोंके भोगी हुए। __ इधर-क्षमाऋषिजीने फिर ऐसा नियम धारण किया कि-सिंधुलराजाका मदोन्मत्त हाथी मकानोंको गिराता हुआ-महावतोंके अंकुश को कुछ न गिनता हुआ लोगोंके देखते २ पांच लड्ड अपनी सूंडसे उठाकर देवे तो मेरे पारणा करना" इस अभिग्रहकी पूर्तिमें मुनिराजको पांच महीने और ग्यारह दिन तपस्या करनी पड़ी।यह अभिग्रह इसतरह पूर्ण हुआ-एकदिन सिंधुल राजाका हाथी मदके वशसे आलानोंको तोड़कर दौड़ा जारहा था,। रास्ते जाते क्षमा मुनिजीकी दृष्टि उस हाथी पर
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