Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) यह सुनकर कृष्णने गुरुमहाराजके पास दीक्षा स्वीकार करली, अब तपस्वी गुरुके चरणोंमें रहकर कृष्णर्षिभी अनेक प्रकारकी तपस्या करने लगा। छः मासका विशुद्ध चारित्र पालकर कृष्णर्षिजी स्वर्ग सुखोंके भोगी हुए। __ इधर-क्षमाऋषिजीने फिर ऐसा नियम धारण किया कि-सिंधुलराजाका मदोन्मत्त हाथी मकानोंको गिराता हुआ-महावतोंके अंकुश को कुछ न गिनता हुआ लोगोंके देखते २ पांच लड्ड अपनी सूंडसे उठाकर देवे तो मेरे पारणा करना" इस अभिग्रहकी पूर्तिमें मुनिराजको पांच महीने और ग्यारह दिन तपस्या करनी पड़ी।यह अभिग्रह इसतरह पूर्ण हुआ-एकदिन सिंधुल राजाका हाथी मदके वशसे आलानोंको तोड़कर दौड़ा जारहा था,। रास्ते जाते क्षमा मुनिजीकी दृष्टि उस हाथी पर For Private And Personal Use Only

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