Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६) प्रयाण करने पर वह भव्यात्मा भी उनके पछेि ही पीछे चलपड़ा। उसने मुनिराजसे पूछा प्रभो ! मेरा आयु ! अब कितना बाकी है ! क्षमाऋषिजीने अपने ज्ञानमें उपयोग देकर कहा तुम्हारा आयु:सिर्फ छः महीनेका बाकी है। कृष्णको बड़ा पथा. त्ताप और भय पैदा हुआ उसने कहा-प्रभो ! मैं इतने स्वल्प जीवन में क्या कर सकूँगा ? मुनिजीने कहा-भाई । डरनेसे भी क्या बन सक्ता है ? कोटि उपाय करने पर भी आयु तो बढ़ नहीं सक्ता, अब बात यह रही कि तुम वास्तविक रीतिसे कल्याणके ही अर्थी हो तो संसारके बंधनोंको त्याग कर आत्मावलंबी बनो । कृष्ण बोला-कृपालु ! आपका फरमान सत्य है परन्तु छः महीनेके आयुमें मैं कैसे आत्मसाधन कर सकूँगा? भगवान तपस्वीबोले-मनुष्य अपनी आत्माको सर्वथा बल For Private And Personal Use Only

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