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(३०) यतस्ततः साधुजनैस्तपःश्रमः, न मन्यतेऽनंतसुखो महाफलः ॥१॥
(अमितगतिः) विना परिश्रम किये महा फलकी प्राप्ति नहीं । परिश्रमके बगैर सुख कभी नहीं मिलता । जब कि-यह सिद्धान्त अटल है तो इसी वास्ते अनंत सुखके दायक-और उत्तमोत्तम फलके संपादक तपके करने में मुनिराज परिश्रम ( कष्ट ) को कुछ नहीं गिनते। __ मनके जीते जीत है, मनके हारे हार । भय और मृत्युके हजारों ही नहीं बल्कि लाखों क्रोडों निमित्तोंको सामने देखता हुआ भी जीव सिर्फ शरीरके मोहसे निगड़ित होकर तपसे वंचित रहता है । वह विचारा यह नहीं विचार करता कि माटीका ठीकरा कितने दिन बचा बचाकर रक्खूगा । इसपर पूर्वर्षियोंका महा
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