Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) तीसरा परिच्छेद घोर अभिग्रह क्षमापारावार-मुनिराज वंहाँसे विहार करके एक शून्यवनकी गुफामें जाकर रहने लगे। इस गिरिगुफामें निवास करते हुए इस महात्माने ऐसे २ घोर अभिग्रह धारण किये कि जो पूरे होने बड़े कठिन थे। परन्तु 'तपसा किं न सिध्यति ?' आत्मबली महापुरुषके प्रभावसे घोरातिधोर नियम भी सुसाध्यसे होने लगे । मुनिराजने पहला अभिग्रह इस तरहका किया कि-" स्नान करके उठा हुआ, केश जिसके खुले हैं, मनमें जिसके किसी किसमका दुःख है, ऐसा 'कृष्ण' (जो कि धारा नरेशका कर्मचारी था) यदि इक्कीसमंडे देवे For Private And Personal Use Only

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