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( २७) वान् कर लेवे तो स्वल्प समयमें वह अपना स्वार्थ साध लेता है। "एकदिवसं पिजीवो,पवज्जं पालिउं अणन्नमणो जइ वि न जाइ मुक्खं, अवस्सवेमाणियो होइ।" युवान अवस्थाके प्रारंभमें नलराजाके भतीजेने जब गुरु महाराजसे पूछा कि-महाराज! मेरा आयु कितना शेष है ? तो मुनिराजने पांच दिनकी जिंदगी अवशिष्ट बतलाई, उसने चारित्र लेकर उतने समयमें भी कार्य साधलिया। राजा हरवाहनकी उमर जब नौप हरकी बाकी थी तब उसने गुरु उपदेशसे चारित्र ग्रहण कर आत्मकल्याण कर लिया। गई सो गई अब राख रही को। सावधान हो जाओ। घबरानेसे कुछ न बनेगा। तावद् भयेन भेतव्यं, यावदनागतं भयं । . आगतं तु भयं दृष्ट्वा, यतितव्यं तदत्यये ॥
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