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(१८) सुनो ? हम तुमको तुम्हारे घरकी ही सुनाते हैं श्रीमद्रामचंद्रजी जब वनवासमें थे, तब उनको “गुह" नामक एक मलाह मिला, उपकार बुद्धिसे श्रीरामचंद्रजीने उसको उपदेश दिया । वह उस सुकर्मयोगसे प्राप्य कर्णप्रिय हृदयाल्हादक उपदेशामृतसे तृप्त हुआ अपने उपकारी श्रीरघुपति रामचंद्रका पवित्र नामस्मरण करता करता अपने स्थान पर चला गया।
कोई एक ऐसा सुप्रसंग आया कि श्री मदरामचद्रंजी उस नदीके किनारे आ पहुँचे कि जिस नदीसे वह मलाह लोगोंको उतारा करता था । दाशरथीको बड़ेभाव और प्रेमसे उसने नाव में बैठाया और क्षणभरमें सामने कांठे जा उतारा! रामचंद्रजीने शिष्टाचारके अनुसार उसको कुछ द्रव्य देना चाहा परन्तु
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