Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हर एक मनुष्य जब न्यायमार्गका परित्याग कर अन्याय मार्ग पर सवार होता है तो उसे आपत्तिका बोझ उठना ही पड़ता है, इसमें संदेह ही क्या ? " सन्मार्गस्वलनाद्भवन्ति विपदः प्रायः प्रभूणामपि"। क्यों इन्होंने धर्ममूर्ति जगतवत्सल मुनिको सताया ? क्यों अनार्योंने ऐसा अकृत्य आचरण किया ? क्यों ये दीवा लेकर कूएमें पड़े ? अगर इन्होंने जगत्पूज्य समतासागर साधु महाराज पर ही अपनी क्रूरताका उपयोग कर अपनी बहादुरी बतलाई है तो अब विषम बिपाक भी इन्हें ही भोगने दो। किसी भी मतके नेताओंसे, संप्रदायके संचालकोंसे, धर्मके प्रवर्तकोंसे, मजहबके दरवेशोंसे, आम्नायके साधुओंसे धर्मका सिद्धान्त पूछोगे तो वे धर्मका महिमा बतलाते हुए यही कहेंगे कि For Private And Personal Use Only

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