Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) "धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः" तो वह धर्म कहां है ? धर्म कोई दृश्य वस्तु नहीं, धर्म कोई किसी दुकानका सौदा नहीं, धर्म किसी खेतका पाक-या बाग बगीचे का फल फूल भी नहीं, धर्म इन संसारत्यागी ऋषि-तपस्वी-मुनिवरोंकी चरण सेवाका नाम है। धमें इन योगिपुरुषों को यथोचित अन्न वस्त्र पात्र भैषज्य वसति प्रमुखके देनेका नाम है । धर्म इनके नाममंत्रके जापका नाम है। जैसे एक रसायनका बिन्दु भी कई मण लोहेको सुवर्ण बना देता है ऐसे ही इन त्यागियोंकी क्षणमात्रकी सेवा-संगति भी मनुष्यके जीवनको उच्च बना देती है, साधुनाम ही साधु तो फिर कसर किस बातकी ? " साधूनां दर्शनं पुण्यं तीर्थभूता हि साधवः । तीर्थ पुनाति कालेन, सद्यः साधुसमागमः॥१॥ For Private And Personal Use Only

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