Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९) उसने वह अपना मेहनताना भी न लेकर एक प्रार्थना वाक्य कह सुनाया ख्यातस्त्वं भवसागरस्य __ दयया पारप्रदोऽहं तथा, लोकानां सरितः कुटुम्बभरण व्याजेन सन्तारकः । युक्तं नापितधावकादिवदतः कैवर्तयोनौ मिथो, नार्थादानमिमं जनं तव पुन घट्टागतं तारयेः ॥१॥ जगत् जानता है कि-तुम दयाभावसे अपने आश्रितोंको संसारसे पार करते हो । मैं अपनी उदर पूर्तिके लिये और कुटुंब निर्वाहके लिये मेरे निकट आये हुए लोगोंको इस नदीसे पार करता हूं। वस्तुतः देखा जाय For Private And Personal Use Only

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