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(२१) अदनासे अदना आदमी इतनी योग्यता रखनेका अधिकारी बना तो अफसोस है ! तुमउत्तम जातिवाले-वेदिये पशुओं पर कि जिनको ऐसे उत्तम तपस्वी पर हाथ उठाना सूझा!!! धिक्कार है ऐसी बुद्धिको ! सहस्रशः धिक्कार है ऐसी समझको, और लाख लानत है ऐसे मिथ्याभिमानियोंके इस दुष्ट पौरुषको ! जाओ मैं इन जैसा नहीं बनता क्षमा करता हूं इन दुर्विनीतोंको, यदि ये अपने जीवनको चाहते हैं तो इस महात्माका चरणोदक पीवें उससे इनका संकट दूर होगा और अगर अपना भला चाहते हो तो इस बातकी श्रद्धा रक्खो कि-मुनौ दृष्टे ध्रुवा सिद्धिः गौर करोकि धर्म तीर्थके समान प्रभुके साक्षा
प्रतिनिधि श्री साधुमहापुरुषोंको देख कर जिसका हृदय कोमल न हुआ वह कैसे अपना यह लोक और परलोक सुधार सक्ता है ?
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