Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) दीनता दिखाते हुए मुनिराजके पैरोंमें पड़े और अपने अपराधी क्षमा मांगने लगे, आगेको ऐसा न होगा इत्यादि अनेक मिन्नतें कीं। इतनेमें मुनिश्री भी “नमो अरिहंताणं"कहकर ध्यान मुक्त हुए। ___ इधर उस देवताने एक लड़केके शरीर में प्रवेश करके कहा सुनो-इन दुष्टोंकी दुष्टता तर्फ देखनेसे तो मन यही चाहता है कि इनकी दया न की जावे, इनकी तमाम जिंदगी ऐसे ही दुःखमें निकलने देवें, परंतु तुम्हारी करुणासे कहा जाता है कि, इन्होंने हमारे अतिथि हमारे पूज्य हमारे ही नहीं बल्कि संसारभरके पूज्यको इन नादानोंने नाहक सताया । साधुमहात्मा जो दुनियाका भला करनेमें कटिबद्ध हैं, जिनके विषयमें निःसंदेह कहा जाता है कि" सरवर-तरुवर-संतजन चौथा वरसे मेह। परमारथके कारणे चारों धरे सनेह " ॥१॥ For Private And Personal Use Only

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