Book Title: Kshama Rushi
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmtilak Granth Society

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) चारित्रचूडामणि शिष्यने नम्रता पूर्वक गुरुमहाराजको प्रार्थना की । हे देव ! आपके चरणोंका शरण लेकर मैंने वैराग्यसे दीक्षा ली है, तो आज मेरे मनमें एक ऐसा मनोरथ उत्पन्न हुआ है कि मैं थोड़े ही समयमें मेरा कार्य सिद्ध कर लूं। और उस कार्यको मैं आपश्रीजी की पूर्ण प्रसन्नता पूर्वक ही करना चाहता हूं। इस लिये उस मेरे मनोरथ सुरतरुको सफल कर और देव मनुष्य या तिर्थक्कृत उपसर्गौको सहन करता हुआ उत्कट तपस्यासे कर्माशोंका विलय करके मेरे कर्मभारसे भारी बनी हुई आत्मा को हलका निर्लेप करूं,। इस मेरे निर्धारित कार्यमें यदि आप देवस्वरूप गुरुमहाराज खुशी होवें तो मैं कहीं जाकर अपना कार्य पार पहूँचा सकूँ, उस मेरे विहारोचित स्थलका भी आप श्री ही आदेश फरमावें। For Private And Personal Use Only

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