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की सफलता करनका उसने दृढ संकल्प कर लिया। जैसे हंस मानस सरोवरको, योगी ब्रह्मको, कामी कामिनीको, वत्स धेनुको चाहे वैसे ही अब वह अपने उद्धारक गुरुकी तलायशमें ग्रामानुग्राम फिरने लगा। प्रसिद्ध है कि-"सत्पुरुषोंको उनका आराधन किया धर्म ही सहायक होता है” आचार्य श्रीयशोभद्र सूरिजीकी असीम कीर्ति उसके सुनने में आई । बोहा-मुमुक्षु भावसे उस सूरिशेखरके पास पहुंचा । गुरुमहाराजके चरणों में रह कर उसने अपनी आत्माको चारित्र धर्मकी योग्यताका पात्र बनाना प्रारंभ किया। तुलना करने पर जब उस भव्यात्माको निश्चय हुआ के-मैं इन महापुरुषोंके सौंपे हुए महाव्रतोंके भारको उठा सकूँगा और उठाये हुए को ठीक मँजल सर पहुँचा सकूँगा, तब उसने गृहस्थाश्रमको छोड़ कर पाँच महाव्रतरूप यतिधर्मको अंगीकार किया।
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