Book Title: Karm Vignan Part 01
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 11
________________ माना, इसलिए उन्होंने पूर्वजन्म और पुनर्जन्म (प्री बर्थ एण्ड रिबर्थ-Pre birthandrebirth) के सिद्धान्त को स्वीकार किया है। ___ साथ ही कर्म को किसी ने आत्मा पर पूर्वजन्म के जमे संस्कार कहा तो किसी ने 'अदृष्ट' और किसी ने 'अपूर्व' इस प्रकार विभिन्न नाम दिये। यह भी घोषित किया कि शुभ कर्मों का फल शुभ मिलता है, और अशुभ कर्मों का फल अशुभ। पूर्वबद्ध कर्मों-कर्म संस्कारों को इन्होंने प्रारब्ध अथवा भाग्य कहा। अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक (luck) और फेट (fate) शब्द प्रचलित हैं। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुड लक (good luck) अथवा गुड फेट (goodfate)कहा जाता है, तथा ऐसे व्यक्ति को (fateful) अथवा (lucky) और अशुभ अथवा दुःखी, दरिद्र व्यक्ति को अनलकी (Unlucky) कहा जाता है। भारतीय भाषाओं में इन्हें पुण्यात्मा और पापात्मा कहा जाता है, तथा शुभ कर्म को पुण्य और अशुभ कर्म को पाप। बौद्ध धर्म में पुण्य और पाप-कर्म को क्रमशः कुशल और अकुशल कर्म कहा गया है। इसी प्रकार सभी धर्म/दर्शनों ने कर्मों के विभिन्न नाम दिये हैं लेकिन अभिप्राय सभी का लगभग समान है। भारत के आस्तिकवादी दर्शनों ने कर्म को ही सुख-दुख और जन्म-मरण के कारण के रूप में स्वीकार किया है। यहाँ कर्म का अर्थ सिर्फ क्रिया या प्रवृत्ति नहीं रहकर, आत्मा पर जमे संस्कार तक आ गया है। जैन कर्म सिद्धान्त . . जैन दर्शन में कर्म पर विशिष्ट और गंभीर चिन्तन/मनन हुआ है। भगवान महावीर ने कहा है-"कम्मच जाई मरणस्स मूल"-कर्म जन्म-मरण का मूल है, और कर्म की उत्पत्ति का कारण बताते हुए कहा है-"कम्मच मोहप्पभव वयन्ति"-कर्म की उत्पत्ति मोह से होती है। . जैन धर्म/दर्शन में कर्म के स्वरूप/प्रक्रिया आदि पर बहुत ही विस्तृत विवेचना की गई है, इसके तलछचट तक पहुंचा गया है। जीव की सूक्ष्मातिसूक्ष्म गतिविधियों की कर्म-सन्दर्भित व्याख्याएं की गई हैं और आत्मा की मुक्ति का मार्ग भी कर्मसिद्धान्त के आधार पर प्रतिपादित किया गया है। कर्म विषय पर-कर्मग्रन्थ, कम्म पयडीओ, पंचसंग्रह, कसाय पाहुड, महाबन्ध, धवला आदि अनेकानेक विपुल ग्रन्थों की रचनाएं हुई हैं। इस प्रकार जैनकर्मसिद्धान्त एक विशिष्टवाद कर्मवाद ही बन गया है, और विवेचन की वैज्ञानिकता ने इसे कर्मविज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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