Book Title: Karm Vignan Part 01
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 10
________________ - पश्चिमी जगत में कर्म शब्द को एक्टिविटी (Activity) वर्क, डीड (Work, deed) आदि शब्दों से अभिव्यक्त किया जाता है । नीतिशास्त्र के विद्वानों ने भी इन शब्दों का प्रयोग किया है। वहाँ शुभ कर्मों के लिए मेरिट (merif) और अशुभ कर्मों के लिए डीमेरिट (demerit) अथवा गुड (good deed) और बैड डीड (bad deed) शब्दों का प्रयोग किया है। शुभ और अशुभ कर्म इस अपेक्षा से कर्म शुभ भी होते हैं और अशुभ भी। समस्त संसार में कर्मों के प्रति शुभत्व और अशुभत्व की धारणा प्रचलित है। यह बात अलग है कि भौगोलिक परिस्थितियों, धर्म की विचारणाओं, धारणाओं, इतिहास की परम्पराओं तथा खान-पान, रहन-सहन आदि की विभिन्नताओं के कारण इन सबके शुभ और अशुभ के मापदण्ड पृथक-पृथक हो गये हैं । कर्म की कालिकता दार्शनिक जगत में कर्म की त्रैकालिक सत्ता मान्य है. जितने भी आस्तिक दर्शन है, चाहे वे भारतीय हों, अथवा पश्चिमी, जो आत्मा की सत्ता में विश्वास रखते हैं, वे सभी कर्म की त्रैकालिक सत्ता स्वीकार करते हैं। भारतीय दर्शनों में जैन, बौद्ध, वैदिक और अन्य एशियायी दर्शनों, कन्फ्यूसियस, ताओ, झेन तथा यूनानी आदि सभी दर्शन कर्म की त्रैकालिक सत्ता के विषय में एकमत हैं। यहाँ तक कि मुस्लिम और ईसाई धर्म-दर्शनों का भी इस विषय में मतभेद नहीं है। भारत का चार्वाक् दर्शन और पश्चिम का एपीक्यूरियनिज्म ही ऐसे दर्शन हैं जो कर्म और उसके फल को वर्तमान जीवन तक ही स्वीकार करते हैं। क्योंकि उनका मत हैं कि यह वर्तमान जीवन ही सब कुछ है, आत्मा नाम का कोई स्वतंत्र तत्त्व नहीं है, अतः पूर्वजन्म और पुनर्जन्म हैं ही नहीं । जब भूतकालीन जीवन और भविष्यकालीन जीवन यानी पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का अस्तित्व ही नहीं है, तो कर्म की त्रैकालिकता का प्रश्न ही नहीं उठता। इनके अतिरिक्त सभी धर्म-दर्शन चाहे वे ईश्वर- केन्द्रित हों अथवा आत्म- केन्द्रित, सभी कर्म की सत्ता को अथवा पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को स्वीकार करते हैं । इस बिन्दु पर सभी दर्शन एकमत हो जाते हैं, किन्तु ईश्वरकर्तृत्व आदि के कारण उनकी कर्म और कर्मफल भोग की व्याख्याओं/ अवधारणाओं में परिवर्तन आ जाता है। विभिन्न दार्शनिकों की दृष्टि में कर्म कर्म की कालिकता स्वीकार करने वाले और ईश्वरकर्तृत्ववादी दार्शनिकों ने ईश्वर के अंश रूप में ही सही, आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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