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: ४८या : भार्थ-प्रीत : १८५८ : 3७ : होने के नाते ही उन्होने इस पत्र में उनके मां गया हता अने त्यां आनन्दघनजी उपनामलिए आदर बडप्पनका सचक कोई विशेषण धारी जैन मुनि लाभानन्दजीने। तेमनेो मिलाप नहीं दिया ।
थयो हतो। अने ते ज वर्षमा तेमना काळ्धर्म (३) 'लाभानन्द' नाम भी उनके खरतर थया हतो" आ मतलबनी वात करी होवानु गच्छ के होने का ही सचक है। क्यों याद छे ।। कि खरतर गच्छ में ८४ दीक्षा का मातृपद दिया चोबीसी विवेचन के प्रासांगिक-अमर लेख है, उनमें आनन्द नन्दी भी है और लाभानन्द के पृष्ट १९ मे ।) नाम के अन्य भी, खरतर गच्छीय यति व मुनियों प्राणलालजी के उक्त जीवन चरित्र का खोज का दीक्षा नाम रखा जाना. 'दीक्षानन्दीदी सूची के लीए मैं ने कई जगह पत्र लिखे । उनके में पाया जाता है।
सम्प्रदाय के प्रसिद्ध मठ, राजकोट को भी पत्र
दिया पर कोई उत्तर नहीं मिला । अंत में मेंडते में उस समय खरतर गच्छ का अच्छा प्रभाव था ही। पुण्य कलश आदि ने वहां चातु
जब मेरे परिचित एक राजस्थानी विद्वान:मास किया । इससे उस समय के प्रभाव का
गोवर्धन शर्मा जामनगर में प्राध्यापक हो कर भी पता चलता है । लाभानन्दजी अष्ट सहस्री
गये तो उनको कई पत्र देने पर उन्होने बहुत पढाते है इससे उनके न्यायविषयक गम्भीर
प्रयत्न कर के 'श्री निजानन्द चरितामृत' नामक ज्ञान का भी पता चलता हैं और अष्ट सहस्री
ग्रंथ मुजे भेजा। उसके पृष्ट ५१७-१८ में मूल दिगंबर ग्रंथ की टीका है इससे उनकी
प्राणलालजी और लाभानन्दजी के मिलने की अध्ययन में उदार एवं विशाल दृष्टि भावना थी,
चर्चा इस प्रकार की है:स्पष्ट होता है।
"अहिं ज्यारे श्री जी पालनपुरथो आगल आनन्दघनजी के स्वर्गवास संवत् का सूचक
वध्या, तो उपदेश करता करता तेओश्री मारवाड एक महत्वपूर्ण समकालीन उल्लेख का भी
मां आवेला मेड़ताशहरमां पहुंच्या। त्यां एक
___ लाभानन्द नाम यति-संन्यासी रहेता हता, तेनी निर्देश यहां कर देना आवश्यक है। पंडित
साथे ज्ञानचर्चा थवा लागी। लाभानन्दजी प्रभुदास बेचरदास पारख ने आनन्दघनजी की
योग विद्या अने चमत्कारिक प्रयोगोमां प्रवीण चौबीसी पर विवेचन लिखा है उसकी प्रस्तावना
हता । लगभग दस दिवस सुधी चर्चा थती में निम्नक्ति उल्लेख है:
रही, अन्तमा ज्यारे लाभानन्दजी पराजित थया "हमणां ज गाडीमा मुसाफरी करतां प्रणामी त्यार तेने श्रीजीना ऊपर बहु क्रोध को अने सम्प्रदायना एक स्वामीजी मल्या हता । तेमणे मंत्र प्रयोगथी पड़ता पत्थरोथी श्रीजीने दबावीजणाव्यु हतु के " हमारा सम्प्रदायनां स्थापक मारी नाखवानो प्रयोग करवा लाग्यो। वळी प्राणलालजी महाराजनां जीवन चरित्र मां लखेलु मंत्र तंत्र कर्या, परंतु श्रीजीना उपर तेनी छे के प्राणलालजी महाराज मेडता संवत् १७३१ चमत्कारिक विद्यानुलेशण जोर चाले नहि ।