________________
१४
इस उपर्युक्त वेदाङ्ग ज्योतिष के संपादन कार्य में एक छोटीसी विसंगतता ज्योतिष करंडकके श्लोक २८८ के विषयमें हो गई है।
"उक्तं चैतत् ज्योतिष करंडे (प. १९६ पद्य २८८)लग्गं च दक्खिणायनविसुवेसु वि अस्स उत्तरं अयणे ।
लग्गं साईविसुवेसु पञ्चसुवि दक्खिणं अयणे ॥ २८८ ॥ छाया-लग्नं च दक्षिणायनविषुवेषु अपि अश्वे उत्तरमयने ।
लग्नं स्वाति विषुवेषु पञ्चस्वपि दक्षिणायने । दक्षिणायनगतेषु पञ्चस्वपि विषुवेषु अश्वे अश्विनीनक्षत्रे लग्नं भवति ।" इत्यादि । वेदाङ्ग ज्योतिष पृष्ठ ५०।
इस श्लोककी छाया और टीका मलयगिरिकृत है और उसका अंग्रेजी अनुवाद डो. शामशास्त्रीने ऐसा किया है।
'The Lagna of the five Vishuwas or equinoctical days in a yuga is the rise of the Ashwini Nakshatra in the Uttarayana and that in the five Dakshinayanas is the rise of the Swati Nakshatra.
-वेदांग ज्योतिष-पृ. ३० उपरके दोनों अवतरणोमें स्थित विसंगति यह है कि इस श्लोककी संस्कृत टीकामें दक्षिणायनमें आनेवाले विषुव दिनका नक्षत्र अश्विनी है और अंग्रेजी भाषांतरमें वही अश्विनी नक्षत्र उत्तरायणके विषुव दिनको जोड दिया गया है । डॉ. शामशास्त्रीको मैंने इस विषयमें पत्र लिखा था । आप अपना अंग्रेजी भाषांतर ही यथार्थ प्रतिपादित करते हैं, कारण स्पष्ट है कि - अश्विनी नक्षत्रमें उत्तरायणका विषुवदिन याने वसंतसंपात यह आजसे लगभग दो हजार वर्ष पूर्व होता था। अन्यथा संस्कृत टीकाकारने लिया हुवा अश्विनी नक्षत्रमें दक्षिणायनका विषुव याने शरदसंपात होने को कमसे कम १४००० चौदह हजार वर्षोसे अधिक काल हो गया है।
ज्योतिषकरंडकका यह श्लोक स्वभावतः क्लिष्ट और संभ्रमोत्पादक है । उसमें दो बार दक्षिणायन शब्द आनेसे उसका संबंध अश्विनीसे लगाना या स्वातीसे लगाना यह एक जटिल समस्या है। और जैन प्राचीन साहित्यके अंदर आनेवाले ज्योतिष विषयके अन्यान्य प्रमाणोंका सम्यक् अभ्यास करनेवाले पंडित ही उसको हल कर सकेंगे।
१. संपात बिंदूकी वाम गति है और नक्षत्रचक्रकी एक पूर्ण प्रदक्षिणा लगभग २६००० वर्षमें होती है। हाल वसंतसंपात उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्रमें है। अश्विनीसे उत्तरा भाद्रपदा तकका दो नक्षत्रोंका अंतर १४ हजार वर्ष पूर्व होता था।